अन्तरिक्ष के लुटेरे
अन्तरिक्ष के लुटेरे -एक समीक्षा !
विज्ञान कथा साहित्य को नया अवदान है विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी जी की लिखी यह उपन्यासिका ! इसे यूनिवर्सिटी बुक हाउस प्रा . लिमिटेड ,जयपुर द्वारा प्रकाशित किया गया है(ISBN:978-81-8198-265-0 ) और मूल्य है १९५ रूपये ! पुस्तक का आमुख तो चित्ताकर्षक है ही अंतर्वस्तु भी कम रोचक नहीं है ! यह बच्चों -किशोरों की अन्तरिक्ष यात्रा की एक मनोरंजक फंतासी है ! किशोर वयी मयूर एक अन्तरिक्ष यान गरुण बना लेता है और अपने अंकल प्रोफेसर जयंत के साथ अन्तरिक्ष में मंगल और बृहस्पति के बीच के क्षुद्र ग्रहिका पट्टी में छुपे खनिजों के पता लगाने की मुहिम पर जुट जाता है ! इस अभियान पर जुड़वाँ गरुण यान रवना होते हैं ताकि एक पर कोई आपदा आये तो भी अभियान चलता रहे !
बहरहाल वे सब अन्तरिक्ष परिवहन की समस्यायों को जूझते हुए जब एक क्षुद्र ग्रह गोल्डस्टार पर पहुँचते हैं तो यह देख कर हतप्रभ रह जाते हैं कि वहां तो पहले से ही किसी दूसरे ग्रह -नक्षत्र से आये एलिएन मौजूद हैं जो हीरे के बड़े खदानों को लूट रहे हैं! दोनों गरुण यान बंदी बना लिए जाते हैं मगर ॐ के सामूहिक और कई तरंगदैर्ध्यों पर उद्घोष से इनकी जान बच जाती है ! ऐसा इसलिए होता है कि परग्रही सभ्यता के लोग ही धरती पर आकार जीवन आबाद किये होते हैं इस रहस्य का खुलासा उनका मुखिया करता है ! मतलब ॐ का स्वर संधान अन्तरिक्ष वासियों के लिए अजूबा नहीं है !उपन्यासिका इसी सुख्नात मोड़ पर समाप्त होती है !
यह कृति मूलतः किशोरों के लिए है इसलिए इसमें लेखक ने उनके फंतासी प्रेमी बाल मन को अनावश्यक तार्किकता से बचाया है! हाँ बड़ों के लिए भी उपन्यासिका रोचक है मगर उन्हें ऐसे सवाल क्लांत कर सकते हैं कि आखिर किशोर नायक मयूर ने बिना किसी प्रशिक्षण और संसाधन के अत्याधुनिक अन्तरिक्ष यान कैसे बनाया ! यह सवाल इसलिए भी गैर मौजू है क्योंकि उपन्यास की कथा वस्तु क्षुद्र ग्रह ग्रहिकाओं में अकूत खनिज संपदा के दोहन की संभावनाओं से परिचय कराने पर आधारित है जो अन्तरिक्ष को लेकर एक नई वैश्विक सुगबुगाहट की ओर भी हिन्दी पाठकों का ध्यान आकृष्ट करती है !
कथाकार ने मूलभूत विज्ञान की ढेर सारी जानकारियाँ भी कथानक में ऐसी पिरोई हैं कि वे कथा प्रवाह में बाधक नहीं बनती ! और हाँ ,मनोविनोद और बच्चों की सहज हंसी ठिठोली से भी पूरा कथानक आप्लावित है जिससे किसी भी उम्र का पाठक मुस्कराए बिना नहीं रहेगा ! यान के कुछ सहयात्रियों में करीम और श्यामलाल का चयन इसी लिहाज से किया गया है -लेखकीय सिद्धहस्तता ही है कि विज्ञान कथाओं में आम तौर पर उपेक्षित रह जाने वाले चरित्र चित्रण के पहलू को भी लेखक ने उभारने में सफलता पायी है ! करीम का चरित्र तो एक समय के बहु पठित इब्ने सफी बी ये के जासूसी दुनिया सीरीज के हंसोड़ किरदार कासिम की याद दिलाता है -लगता है करीम का चरित्र कासिम से ही अनुप्राणित है !
पुस्तक पठनीय और बच्चों को उपहार देने योग्य है !
विष्णु प्रसाद जी हिन्दी बाल साहित्य के एक प्रतष्ठित लेखक हैं। उन्होंने इधर के कुछ वर्षों में विज्ञान कथा के लिए अच्छा काम किया है। उनकी इस उपन्यासिका से परिचित कराने का आभार। पुस्तक सम्बंधी तकनीकी कमियों की ओर सभी लोगों को ध्यान रखना चाहिए। बाल साहित्य में इस तरह की कमियां अक्सर देखने को मिल जाती हैं।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
महानुभाव से परिचय का शुक्रिया
ReplyDeleteविष्णु प्रसाद जी के कृतित्व के प्रति अंजान था । इस उपन्यासिका के यहाँ उल्लेख से परिचय तो हुआ ही उत्कंठा भी हो रही है पढ़ने की । आभार।
ReplyDeleteबाल साहित्य में विज्ञान कथा क्षेत्र में एक अच्छा प्रयास. ये और बेहतर होता अगर तार्किकता का पहलू कुछ और मज़बूत रखा जाता.
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