उड़ती मोटरें ,प्रशीतित ऊर्जा चालित अन्तरिक्ष यान ,बुद्धि चातुर्य युक्त मशीनें और रोबोट ,चौतरफा विध्वंस हालीवुड फिल्मों के आम दृश्य हैं .दरअसल इन फिल्मों का मुख्य उद्येश्य दर्शकों का मनोरंजन है न कि भविष्य का एक सटीक पूर्वानुमान मगर यह आश्चर्यजनक है कि कुछ दृश्य कालान्तर में हकीकत में भी बदलते रहे हैं .हालाकिं कुछ प्रौद्योगिकियां पहले से ही वजूद में रही हैं जिन्हें हालीवुड फ़िल्में एक कल्पित विस्तार देती आयी हैं -इसलिए कई विज्ञान कथा विचारक यह मानते हैं कि हालीवुड भले ही भविष्य का पूर्वानुमान न करता हो यह आगत को तो प्रभावित जरुर करता है . बहुत से वैज्ञानिक या प्रौद्योगिकीविद इन फिल्मों से निश्चय ही भविष्य की प्रौद्योगिकी की प्रेरणा पाते रहे हैं .
मशहूर हालीवुड फिल्म निर्माता कुब्रिक की २००१: ऐ स्पेस ओडिसी का कम्प्यूटर एच ऐ अल ९००० लोगों की आवाज पहचानने की क्षमता रखता है -उसकी अपनी विकसित कृत्रिम बुद्धि भी है .यह फिल्म १९६८ में आयी थी . तब तो कम्प्यूटर का माउस भी अपना आज का रूपाकार नहीं पा सका था -आवाज पहचानने की बात तो तब दूर की कौड़ी थी मगर आज कम्प्यूटर का आवाज पहचानना (वायस रिकग्निशन ) एक सचाई बन चला है .इसी तरह १९८२ में आयी फिल्म ब्लेड रनर में भी आवाज पहचानने के अद्भुत दृश्य थे -निश्चय ही इन फिल्मों ने इस अविश्वसनीय सी लगने वाली जुगत विकसित करने में प्रेरणादायक की भूमिका निभाई है .आज स्मार्ट फोन तक में यह जुगत इस्तेमाल में है . आयी बी एम कम्प्यूटर समूह स्पीच रिकग्निशन प्रौद्योगिकी को और भी व्यापक रूप देने में लगा है .
परकाया प्रवेश जैसी पुराण कल्पनाएँ हालीवुड फिल्मों की वर्चुअल रियलिटी संस्करण बन गयी हैं जहाँ मनुष्य का आभासी रूप कहीं भी प्रक्षेपित हो सकता है -अभेद्य दीवारों के भीतर सहज ही घुसपैठ कर दस्तावेजों की छान बीन कर सकता है -मायिनारिटी रिपोर्ट (2002) एक ऐसे ही हैरत अंगेज वर्चुअल रियलिटी का साक्षात्कार दर्शकों को कराता है. ऐसे दृश्यों को दिखलाने के लिए स्पीलबर्ग ने सम्बन्धित विषयों के कई विशेषज्ञों की मदद ली थी . कम्प्यूटर जनित एक आभासी संसार में वास्तविकता की अनुभूति के आरम्भिक उदाहरण हमारे सामने आने आरम्भ हो गए है -कई कम्प्यूटर गेम ऐसे ही बन रहे हैं जहाँ विमान ही नहीं अन्तरिक्ष यानों तक के उड़ान के वास्तविक रोमांच की अनुभूति हो सकती है . भविष्य में रोजमर्रा ज़िंदगी के ज्यादातर कारोबार में इस तकनीक का उपयोग (और दुरूपयोग भी ? ) बढ़ता जाएगा . मनुष्य के साईबोर्ग बनते जाने का यह खेल अब शुरू हो चुका है और विज्ञान कथाओं में इस विधा को साईबर पंक का नाम दिया जा चुका है -एक ऐसी आभासी दुनिया हमारा इंतज़ार कर रही है जहाँ हम अपनी पूरी इन्द्रियों के साथ अशरीरी वजूद में मौजूद होंगें -बिनु पग चलै सुनै बिनु काना की सूझ साकार होने की राह पर है .
वैसे ज्यादातर हालीवुड फ़िल्में विध्वंस को अपनी थीम बनाती हैं . डे आफ्टर टुमारो(२००४) ,आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस (२००१) इस तरह की फिल्मों की अगुआई करती दिखती हैं -शायद ऐसी फिल्मों से मनुष्य के मन की विध्वंस को देखने की चाह का एक शांतिपूर्ण शमन होता है . डे आफ्टर टुमारो ग्लोबल वार्मिंग से उपजे जल प्लावन का हाहाकारी दृश्यांकन करती है -क्या भविष्य में ऐसा हो सकता है? -कौन जाने? २०१२ फिल्म भी एक ऐसे ही दहशतनाक मंजर को प्रस्तुत करती है .
कौन चाहेगा कि ऐसे दृश्य कभी सकार हों मगर हालीवुड फ़िल्में इन फिल्मों के माध्यम से एक प्रभावी संदेश पर्यावरण संरक्षण के पक्ष में तो दे ही रही हैं . कुछ और फिल्मों का जिक्र यहाँ लाजिमी है जैसे गटाक्का जो मनुष्य के डी एन ऐ श्रृंखला में परिवर्तन से मनुष्य में आकार प्रकार के बदलावों को कथावस्तु बनाती है तो द रोड बढ़ती जनसंख्या से होने वाली दुश्वारियों और धरती को नर्क बनते जाने की दशा -महादशा को फोकस करती है . रोबोट इसाक आसिमोव की कहानी पर आधारित है और मनुष्य और रोबोट के आपसी कार्य व्यवहारों पर केद्रित है . डिस्ट्रिक्ट ९ धरती पर ही समृद्ध और प्रवंचित लोगों के बीच के वर्ग संघर्ष को एलियेन लोगों के धरती पर आने पर हमारे उनसे संघर्ष के तरीकों के जरिये दिखाती है . चिल्ड्रेन आफ होम भी ऐसे ही वर्ग संघर्षों का पूर्वावलोकन कराती है - विज्ञान और प्रौद्योगिकी की लाख प्रगति के बाद भी क्या हम अपने आदिम संस्कारों से मुक्त हो पाए हैं ? आज भी क्या ये फ़िल्में हमें अपने भविष्य का आईना नहीं दिखा रही हैं ? -शायद यह एक चेतावनी है जिसे हमें समय रहते समझना और सुलझाना होगा -नहीं तो हालीवुड फिल्मों का वर्णित भविष्य कहीं सचमुच एक हकीकत ही न बन जाए ?