पुस्तक समीक्षा : एक और क्रौंच वध
वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं मानवीय संवेदना का संतुलन
प्रोफेसर रामदेव शुक्ल ,विभागाध्यक्ष (निवर्तमान) ,
हिन्दी विभाग ,
गोरखपुर विश्वविद्यालय (उ0प्र0)
अपनी सर्जनात्मक कल्पना के माध्यम से मनुष्य बेहतर दुनिया बनाने के लिए तब से प्रयत्नशील है, जब से उसने भाषा की खोज करके सामाजिक जीवन का आरम्भ किया। कल्पना, स्वप्न और यथार्थ को लेकर फैंटेसी रचती है जो आगे चलकर जिज्ञासु वैज्ञानिकों को प्रकृति के नियमों की खोज में प्रवृत्त कर देती है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व आविष्कार धरती पर मानव जीवन को सुखसुविधा के साधनों से सम्पन्न करते आ रहे हैं। उनमें से अधिकांश का संकेत एक डेढ़ सौ वर्ष पहले से ही विज्ञान कथाओं द्वारा मिलने लगे थे। विज्ञान कथाओं में कल्पना की उड़ान के सर्वाधिक बड़े अन्तहीन क्षेत्र के रूप में ब्रह्माण्ड की अगणित आकाशगंगाओं और उनमें सक्रिय सौरमण्डलों में जीवन की उपस्थिति का विषय रहा है। अभी तक पृथ्वी के अतिरिक्त किसी अन्य ग्रह पर जीवन की उपस्थिति के ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, किन्तु इस सम्भावना पर सभी देशों में वैज्ञानिक अभियान सक्रिय है।
सबसे उर्वर क्षेत्र इस सम्भावना का है कि पृथ्वी से अनेक प्रकाशवर्ष दूर स्थित ग्रहों पर विकसित होने वाली सभ्यताओं की वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियाँ पृथ्वीवासियों की अपेक्षा हजारों गुना विकसित हैं। डॉ0 अरविन्द मिश्र की अनेक विज्ञान कथाएँ ऐसे कल्पित ग्रहों और उनके निवासियों को हिन्दी पाठक वर्ग के समक्ष मूर्त करती हैं। `गुरूदक्षिणा´ कहानी में पृथ्वी पर अपनी ही आकाशगंगा के सैटोरी तारामंडल के टेरान ग्रह की अति उन्नत सभ्यता का वर्णन है। वहाँ भी जीवन का क्रमिक विकास पृथ्वी के समान ही एक कोशीय प्राणी से मनुष्य के उच्चतम रूप तक हुआ है। उनकी प्रौद्योगिकी पृथ्वी की अपेक्षा हजारों साल आगे है। वहाँ सारा काम रोबोट करते हैं। यहाँ तक कि तार्किक चिन्तन भी रोबोट करते हैं। प्रजनन को छोड़कर सारा काम। रोबोट वहाँ के वैज्ञानिको के निर्देशन में पृथ्वी की सभ्यता-संस्कृति का अध्ययन करना चाहते है। एक रोबोट पृथ्वी के युवा वैज्ञानिक का रूप धारण करके एक प्रोफेसर के पास आता है।
प्रोफेसर कुछ ही देर पहले हुई ट्रेन दुर्घटना में अपने प्रिय शिष्य हर्ष की मृत्यु के समाचार से अवसन्न है कि अचानक हर्ष उपस्थित होकर उन्हें चकित कर देता हैं। बताता है कि ट्रेन उस समय दुर्घटना ग्रस्त हुई, जब वह एक पुल से गुजर रही थी। मैं नदी में गिर कर बच गया। सबेरे नदी किनारे होश में आया तो लगा कि मुझे प्रकृति ने बचा लिया है। यही नया हर्ष था अर्थात रोबोट, जो दुर्घटना में मर चुके युवा हर्ष के वेश में प्राफेसर उदयन के पास आया था। उसे अपने ग्रह के वैज्ञानिक नियमों के अनुसार काम करने के लिए पृथ्वी पर दो वर्ष का समय मिला था। रोबो हर्ष एक जनवरी 2001 से लेकर 25 दिसम्बर 2002 तक की अपनी डायरी के पृष्ठ पढ़ता है। कथाकार ने डायरी के माध्यम से भारतीय विश्वविद्यालयों में शोधकार्य के क्षेत्र की अनेक विसंगतियों, भारतीय सभ्यता, संस्कृति, इतिहास, मन्दिर , भगवान आदि पर सटीक टिप्पणियाँ की है। रोबो हर्ष प्रयोगशाला में डायरी के पन्ने पढ़ रहा था, उसी समय प्रोफेसर उदयन आए। डायरी पर उनकी निगाह नहीं पड़ी। अध्ययनरत शोधछात्र की साधना से पुलकित प्रोफेसर उसके साथ ही घर गये। उधर टेरान ग्रह के प्रमुख ने हर्ष को सूचना दी कि 31 दिसम्बर को रात दस बजे अदृश्य यान उसे लौटाने के लिए घर के सामने उतरेगा। उस रात प्रोफेसर के अन्तिम दर्शन के लिए पहुँचने पर हर्ष ने प्रोफेसर को हार्ट अटैक से तड़पते देखा। फोन करके उसने उनके डाक्टर को बुलाया। उपचार के बाद डाक्टर ने हर्ष से कहा, हर्ष! तुम्हारे सिवा दुनिया में प्रोफेसर का कोई नहीं है। ... ... अब तो तुम्हारी सेवा सुश्रूषा और सानिध्य ही इन्हें नया जीवन दे सकता है। समझ लो, यही तुम्हारी गुरूदक्षिणा है।´´
कहानी का अंत इस रूप में किया गया है कि रोबो हर्ष अपने ग्रह के प्रमुख वैज्ञानिकों के आदेश की अवहेलना करके गुरूदक्षिणा चुकाने के लिए अपने ग्रह को छोड़कर पृथ्वी का निवासी बन जाता है। लेखक ने आखिरी वाक्य लिखा है- `` टेरानवासियों ने अपना एक बेहतरीन रोबो खो दिया था ... ...।´´ कुशल कथा शिल्पी अरविन्द मिश्र ने रोबो को मूल्यचेतस मुनष्य में बदल दिया है।
``राज करेगा रोबोट´´ कहानी में रोबोशासित ग्रह के प्रमुख की घोषणा होती है, ``मानवों का सर्वनाश हमारा मुख्य ध्येय होगा... ... आपरेशन जीनोसाइड।´´ पृथ्वी के वैज्ञानिकों को खबर मिल गयी। `टाइम मशीन´ और स्वप्नदर्शक यंत्र के सहारे अतीत में जाकर भविष्य को सुधारने का प्रयास किया गया। अन्त में इजाक आजिमोव विरचित `रोबोटस एण्ड एम्पायर 'की घोषणा होती है कि ' कोई भी रोबोट मानवता को हानि नहीं पहुँचायेगा और अपनी किसी कार्यविधि से मानवता को यह मौका नहीं देगा कि खुद उसे (रोबोट का) कोई हानि पहुँचे। ' सन् 2901 में रोबो को पूरी तरह अपने जन्मदाता मानव की सुख सुविधा का ध्यान रखने वाले अनुचर के रूप में परिकल्पित किया गया है। रोबोटिक्स की नियमावली के कारण यह करिश्मा हो सका। उसी नियमावली के कारण भारत वर्ष के एक कार्यालय में काम करने आई सुन्दरी रोबोट रोबिनों ने कार्यारम्भ करने के पहले ही त्यागपत्र दे दिया। इन दोनो कहानियों मे पाठक का भरपूर मनोरंजन भी होता है, और `रोबो´ प्रकरण के साथ मानवीय भावनाओं के सामंजस्य का आस्वादन भी।
`सम्मोहन´ कहानी में बारह प्रकाश वर्ष दूर ग्रह के रोबोट से एक अंधी युवती की भेंट काफी हाऊस में होती हैं। वह आदमी के रूप में है। उसी तरह खाता पीता है। उसकी आवाज से असहज हो आई युवती की हैरानी देखकर वह अपना परिचय देता है। ``हम लौह भक्षी है, बिना लोहे के हम जिन्दा नहीं रह सकते। हमारी बनावट में लोहे के अंश ही तो है... ...। आप के यहाँ तो रोबोट के ढ़ाँचे भर है ... ...पर हम तो बुद्धि से युक्त अत्यन्त उन्नत सभ्यता के लोग है- रोबो जैसे निर्मित बुद्धिहीन प्राणी नहीं ... ... हम अजर अमर है, हम प्रजनन कर सकते हैं ... ... हम खरबों में पहुँच चुके हैं... ... इन खरबों उदरपिशाचों को लोहा चाहिए, लोहा नाश्ते में, लोहा खाने में दोनो वक्त .. ...।´´ वह बताता है कि हम लोग पृथ्वी का सारा लोहा लूटने आए है। तीन चरणों में लूटेंगे। विदा लेते समय उसने युवती को सम्मोहित करके आदेश दिया कि तुम मेरे विषय में सब कुछ भूल जाओगी। लेखक की शिल्प योजना के अनुसार युवती अंधी है, इसलिए सम्मोहित नहीं होती और लेखक को अजनबी के विषय में बता देती है।
अरविन्द मिश्र की विज्ञान कथाओं में वैज्ञानिक आविष्कारों के आधार पर कहानी रची जाती है। इसके साथ ही गहरी चिन्ता आज की सभ्यता में `मनुष्यता´ अर्थात मानवीय भावनाओं के विलुप्त होते जाने पर व्यक्त होती है। इस कहानी में अन्तरिक्ष वासी रोबोट कहता है, ``हमारी पहली खेप तुम्हारे सारे अस्त्र शस्त्र और आयुध होंगे। एक तरह से यह तुम्हारे लिए वरदान ही होगा। `छुपा हुआ वरदान´ -बड़ी लड़ाई करते हो तुम तुच्छ लोग। आपस में ही लड़ते मरते रहते हो... .. तुम्हारी जैसी लड़ाकू स्पीशीज का यही हश्र उचित होगा।´ इसी तरह `राज करेगा रोबोट´ कहानी में मानवों का नामोनिशान मिटाने की योजना इसलिए बनाई जाती है कि ``लालची, लोभी, घमण्डी, स्वार्थी मानवों का सर्वनाश ही हमारा मुख्य ध्येय होगा।`` लेखक वर्तमान युग के मानवों में इन अमानवीय दुर्गुणों के अतिचार से मुक्त पूर्ण मानवीय सभ्यता का स्वप्न देखता है। बीसवीं शताब्दी के दो विश्वयुद्धों में व्यापक नरसंहार के बाद दुनिया भर के संवदेनशील बुद्धिजीवी विश्व के समस्त देशों के एक शासनतंत्र की सम्भावना तलाशने लगे थे। इसी कहानी में अरविन्द मिश्र ने केवल एक विश्लेषण के माध्यम से उस परिकल्पना का संकेत किया है। रोबो आक्रमण से बचाव के लिए बुलाई गयी बैठक को `वैश्विक सरकार के मुखिया´ संबोधित कर रहे थे। संकेत की व्यंजना स्पष्ट है कि एक होने के कारण मानव बच सके।
`अतिम दृश्य´ कहानी `मेटेरियल ट्रांसमिशन´ की सम्भावना पर आधारित कहानी है। अनेक नाटक और फिल्मी कथानक कहानी की रचना प्रक्रिया के शिल्प में आते हैं। अन्त में दर्शक सुखद एहसास से भर जाता है, यह देखकर कि नाटक तो पूरा हो गया। इसी विषय पर कहानी लिखने वाला लेखक अपने मित्र से बात करता है। अमेरिकी मित्र विपिन की बात होती है। वह इसी प्रक्रिया से अमेरिका से आता है। कहानी के विषय में चर्चा सुनता है, करता है। कहानी का अंत होता है लेखक के बाथरूम जाने से। अमेरिका पहुँचकर पलभर बाद विपिन वहाँ से फोन करके मेटीरियल ट्रांसमिशन का प्रत्यक्ष प्रमाण देता है। पाठक मंत्रमुग्ध होकर `मैटेरियल ट्रांसमिशन´ का चमत्कार देखता है। सुगठित शिल्प में रची यह कहानी विज्ञान की अपूर्व क्षमता व्यंजित कर देती है।
हिमालय की ऊँचाइयों पर `येती´ नामक प्रजाति के होने की अनेक कथाएँ प्रचलित है। `कायान्तरण´ कहानी एक जीव वैज्ञानिक तथ्य पर रची गयी सम्भावना है। `सैलामेण्डर अपने लार्वा रूप में ही प्रजनन करता है ... ...ऐम्बायोस्टोमा सैलामेन्डर का स्थायी लार्वारूप बनकर प्रजनन करने लगता है।´ अरविन्द मिश्र एक सम्भावना पर काम करते हुए अपने मित्र के हेलीकाप्टर दुर्घटना में बचकर येती परिवार में पहुँचने और `येती´ में कायान्तरित हो जाने की कथा गढ़ लेते हैं। पाठक चमत्कृत होकर अपने और वानर प्रजाति के सम्बन्ध पर सोचने लगता है। पूरी कहानी पत्र शैली में लिखी गयी है, कायान्तरित व्यक्ति का पत्र लेखक के नाम और लेखक का पत्र कहानी के पाठको के नाम। यह शैली, कहानी की विश्वसनीयता को बचाए रखती है।
`आपरेशन कामदमन´ कहानी सर्जनात्मकता और कामेच्छा के अभेद्य सम्बन्ध की मनोवैज्ञानिक कथा है। सर्जनात्मक साहित्य की महत्ता स्वीकार करके कुछ वैज्ञानिक चिन्ता करते हैं कि लेखक काम की पूर्ति में अपनी ऊर्जा का अपव्यय कर देते हैं। इसलिए कुछ लेखकों की सहमति से उनकी कामेच्छा आपरेशन करके खत्म कर दी जाती है परिणाम? वे सभी स्वस्थ, प्रसन्नचित्त और निरोगी थे, किन्तु उनके रचने की चाह का लोप हो गया सा लगता था।´´ भारतीय परम्परा पूरी सृष्टि को काम-कामना का ही परिणाम मानती है। महाकाव्य `कामायनी´ में जयशंकर प्रसाद की स्पष्ट घोषणा है-
काम मंगल से मंडित श्रेय, सर्ग (सृष्टि) इच्छा का है परिणाम। तिरस्कृत कर इसको तुम भूल बनाते हों असफल भव-धाम।।
अरविन्द मिश्र ने अपनी कहानी में इस सत्य का मार्मिक व्यंजना की है। `एक और क्रौंच-वध´ में वैज्ञानिक की निर्ममता को प्रेम की कोमल अनुभूति के हाथों पराजित होना पड़ता है।
`अछूत´ कहानी में एक अद्भुत उड़ान है, कल्पना की। सुदूर किसी ग्रह पर सारा काम बहुत उन्नत सभ्यता के लोग अति उन्नत तकनीकी के माध्यम से करते हैं। पृथ्वी के एक वैज्ञानिक उस सुदूर ग्रह के वासी एक परिवार तक अपना संदेश पहुँचा देते हैं कि अपना विवाह किसी उन्नत ग्रह की वैज्ञानिक युवती से करना चाहते हैं। उधर से भी युवती और उसके माता-पिता सहमत हो जाते हैं। किन्तु पृथ्वी से विशेष यान द्वारा विवाह के लिए उस ग्रह पर पहुँचते ही पता चलता है कि वहाँ भी शूद्र और अछूत की समस्या पृथ्वी के देश भारत की तरह ही घृणित रूप में फलफूल रही हैं। कथाकार इस अमानवीय प्रथा को अस्वीकार मानते हैं। किन्तु यह भूल जाते हैं कि इतनी उन्नत अवस्था में यह कोढ़ रह ही नहीं सकता। `धर्म पुत्र´ `अन्तरक्षि कोकिला´ आदि कहानियाँ वैज्ञानिक आविष्कारों की सम्भाव्यता के साथ पाठक का भरपूर मनोरंजन करती हैं।
डॉ0 अरविन्द वैज्ञानिक हैं और कथाकार भी। अपने दोनों रूपों के बीच सहज संतुलन स्थापित कर लेने के कारण ही वे अपनी कहानियों के माध्यम से वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवीय संवेदना का विकास करने में सफल हो रहे हैं।
रामदेव शुक्ल
शीतल युयश, राप्ती चौक, आरोग्य मंदिर
गोरखपुर-273003
(मूल कृति-एक और क्रौंचवध, प्रथम संस्करण, 1998, तृतीय नव-संस्करण, 2008, मूल्य रु0 125/- पृष्ठ 94, प्रकाशक : लोक साधना केन्द्र, वाराणसी) वितरक : विश्व हिन्दी पीठ, 3/16, आवास विकास कालोनी, कबीर नगर, वाराणसी-221005 )एक और समीक्षा ब्लागर अनूप शुक्ल द्वारा
वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं मानवीय संवेदना का संतुलन
प्रोफेसर रामदेव शुक्ल ,विभागाध्यक्ष (निवर्तमान) ,
हिन्दी विभाग ,
गोरखपुर विश्वविद्यालय (उ0प्र0)
अपनी सर्जनात्मक कल्पना के माध्यम से मनुष्य बेहतर दुनिया बनाने के लिए तब से प्रयत्नशील है, जब से उसने भाषा की खोज करके सामाजिक जीवन का आरम्भ किया। कल्पना, स्वप्न और यथार्थ को लेकर फैंटेसी रचती है जो आगे चलकर जिज्ञासु वैज्ञानिकों को प्रकृति के नियमों की खोज में प्रवृत्त कर देती है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व आविष्कार धरती पर मानव जीवन को सुखसुविधा के साधनों से सम्पन्न करते आ रहे हैं। उनमें से अधिकांश का संकेत एक डेढ़ सौ वर्ष पहले से ही विज्ञान कथाओं द्वारा मिलने लगे थे। विज्ञान कथाओं में कल्पना की उड़ान के सर्वाधिक बड़े अन्तहीन क्षेत्र के रूप में ब्रह्माण्ड की अगणित आकाशगंगाओं और उनमें सक्रिय सौरमण्डलों में जीवन की उपस्थिति का विषय रहा है। अभी तक पृथ्वी के अतिरिक्त किसी अन्य ग्रह पर जीवन की उपस्थिति के ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, किन्तु इस सम्भावना पर सभी देशों में वैज्ञानिक अभियान सक्रिय है।
सबसे उर्वर क्षेत्र इस सम्भावना का है कि पृथ्वी से अनेक प्रकाशवर्ष दूर स्थित ग्रहों पर विकसित होने वाली सभ्यताओं की वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियाँ पृथ्वीवासियों की अपेक्षा हजारों गुना विकसित हैं। डॉ0 अरविन्द मिश्र की अनेक विज्ञान कथाएँ ऐसे कल्पित ग्रहों और उनके निवासियों को हिन्दी पाठक वर्ग के समक्ष मूर्त करती हैं। `गुरूदक्षिणा´ कहानी में पृथ्वी पर अपनी ही आकाशगंगा के सैटोरी तारामंडल के टेरान ग्रह की अति उन्नत सभ्यता का वर्णन है। वहाँ भी जीवन का क्रमिक विकास पृथ्वी के समान ही एक कोशीय प्राणी से मनुष्य के उच्चतम रूप तक हुआ है। उनकी प्रौद्योगिकी पृथ्वी की अपेक्षा हजारों साल आगे है। वहाँ सारा काम रोबोट करते हैं। यहाँ तक कि तार्किक चिन्तन भी रोबोट करते हैं। प्रजनन को छोड़कर सारा काम। रोबोट वहाँ के वैज्ञानिको के निर्देशन में पृथ्वी की सभ्यता-संस्कृति का अध्ययन करना चाहते है। एक रोबोट पृथ्वी के युवा वैज्ञानिक का रूप धारण करके एक प्रोफेसर के पास आता है।
प्रोफेसर कुछ ही देर पहले हुई ट्रेन दुर्घटना में अपने प्रिय शिष्य हर्ष की मृत्यु के समाचार से अवसन्न है कि अचानक हर्ष उपस्थित होकर उन्हें चकित कर देता हैं। बताता है कि ट्रेन उस समय दुर्घटना ग्रस्त हुई, जब वह एक पुल से गुजर रही थी। मैं नदी में गिर कर बच गया। सबेरे नदी किनारे होश में आया तो लगा कि मुझे प्रकृति ने बचा लिया है। यही नया हर्ष था अर्थात रोबोट, जो दुर्घटना में मर चुके युवा हर्ष के वेश में प्राफेसर उदयन के पास आया था। उसे अपने ग्रह के वैज्ञानिक नियमों के अनुसार काम करने के लिए पृथ्वी पर दो वर्ष का समय मिला था। रोबो हर्ष एक जनवरी 2001 से लेकर 25 दिसम्बर 2002 तक की अपनी डायरी के पृष्ठ पढ़ता है। कथाकार ने डायरी के माध्यम से भारतीय विश्वविद्यालयों में शोधकार्य के क्षेत्र की अनेक विसंगतियों, भारतीय सभ्यता, संस्कृति, इतिहास, मन्दिर , भगवान आदि पर सटीक टिप्पणियाँ की है। रोबो हर्ष प्रयोगशाला में डायरी के पन्ने पढ़ रहा था, उसी समय प्रोफेसर उदयन आए। डायरी पर उनकी निगाह नहीं पड़ी। अध्ययनरत शोधछात्र की साधना से पुलकित प्रोफेसर उसके साथ ही घर गये। उधर टेरान ग्रह के प्रमुख ने हर्ष को सूचना दी कि 31 दिसम्बर को रात दस बजे अदृश्य यान उसे लौटाने के लिए घर के सामने उतरेगा। उस रात प्रोफेसर के अन्तिम दर्शन के लिए पहुँचने पर हर्ष ने प्रोफेसर को हार्ट अटैक से तड़पते देखा। फोन करके उसने उनके डाक्टर को बुलाया। उपचार के बाद डाक्टर ने हर्ष से कहा, हर्ष! तुम्हारे सिवा दुनिया में प्रोफेसर का कोई नहीं है। ... ... अब तो तुम्हारी सेवा सुश्रूषा और सानिध्य ही इन्हें नया जीवन दे सकता है। समझ लो, यही तुम्हारी गुरूदक्षिणा है।´´
कहानी का अंत इस रूप में किया गया है कि रोबो हर्ष अपने ग्रह के प्रमुख वैज्ञानिकों के आदेश की अवहेलना करके गुरूदक्षिणा चुकाने के लिए अपने ग्रह को छोड़कर पृथ्वी का निवासी बन जाता है। लेखक ने आखिरी वाक्य लिखा है- `` टेरानवासियों ने अपना एक बेहतरीन रोबो खो दिया था ... ...।´´ कुशल कथा शिल्पी अरविन्द मिश्र ने रोबो को मूल्यचेतस मुनष्य में बदल दिया है।
``राज करेगा रोबोट´´ कहानी में रोबोशासित ग्रह के प्रमुख की घोषणा होती है, ``मानवों का सर्वनाश हमारा मुख्य ध्येय होगा... ... आपरेशन जीनोसाइड।´´ पृथ्वी के वैज्ञानिकों को खबर मिल गयी। `टाइम मशीन´ और स्वप्नदर्शक यंत्र के सहारे अतीत में जाकर भविष्य को सुधारने का प्रयास किया गया। अन्त में इजाक आजिमोव विरचित `रोबोटस एण्ड एम्पायर 'की घोषणा होती है कि ' कोई भी रोबोट मानवता को हानि नहीं पहुँचायेगा और अपनी किसी कार्यविधि से मानवता को यह मौका नहीं देगा कि खुद उसे (रोबोट का) कोई हानि पहुँचे। ' सन् 2901 में रोबो को पूरी तरह अपने जन्मदाता मानव की सुख सुविधा का ध्यान रखने वाले अनुचर के रूप में परिकल्पित किया गया है। रोबोटिक्स की नियमावली के कारण यह करिश्मा हो सका। उसी नियमावली के कारण भारत वर्ष के एक कार्यालय में काम करने आई सुन्दरी रोबोट रोबिनों ने कार्यारम्भ करने के पहले ही त्यागपत्र दे दिया। इन दोनो कहानियों मे पाठक का भरपूर मनोरंजन भी होता है, और `रोबो´ प्रकरण के साथ मानवीय भावनाओं के सामंजस्य का आस्वादन भी।
`सम्मोहन´ कहानी में बारह प्रकाश वर्ष दूर ग्रह के रोबोट से एक अंधी युवती की भेंट काफी हाऊस में होती हैं। वह आदमी के रूप में है। उसी तरह खाता पीता है। उसकी आवाज से असहज हो आई युवती की हैरानी देखकर वह अपना परिचय देता है। ``हम लौह भक्षी है, बिना लोहे के हम जिन्दा नहीं रह सकते। हमारी बनावट में लोहे के अंश ही तो है... ...। आप के यहाँ तो रोबोट के ढ़ाँचे भर है ... ...पर हम तो बुद्धि से युक्त अत्यन्त उन्नत सभ्यता के लोग है- रोबो जैसे निर्मित बुद्धिहीन प्राणी नहीं ... ... हम अजर अमर है, हम प्रजनन कर सकते हैं ... ... हम खरबों में पहुँच चुके हैं... ... इन खरबों उदरपिशाचों को लोहा चाहिए, लोहा नाश्ते में, लोहा खाने में दोनो वक्त .. ...।´´ वह बताता है कि हम लोग पृथ्वी का सारा लोहा लूटने आए है। तीन चरणों में लूटेंगे। विदा लेते समय उसने युवती को सम्मोहित करके आदेश दिया कि तुम मेरे विषय में सब कुछ भूल जाओगी। लेखक की शिल्प योजना के अनुसार युवती अंधी है, इसलिए सम्मोहित नहीं होती और लेखक को अजनबी के विषय में बता देती है।
अरविन्द मिश्र की विज्ञान कथाओं में वैज्ञानिक आविष्कारों के आधार पर कहानी रची जाती है। इसके साथ ही गहरी चिन्ता आज की सभ्यता में `मनुष्यता´ अर्थात मानवीय भावनाओं के विलुप्त होते जाने पर व्यक्त होती है। इस कहानी में अन्तरिक्ष वासी रोबोट कहता है, ``हमारी पहली खेप तुम्हारे सारे अस्त्र शस्त्र और आयुध होंगे। एक तरह से यह तुम्हारे लिए वरदान ही होगा। `छुपा हुआ वरदान´ -बड़ी लड़ाई करते हो तुम तुच्छ लोग। आपस में ही लड़ते मरते रहते हो... .. तुम्हारी जैसी लड़ाकू स्पीशीज का यही हश्र उचित होगा।´ इसी तरह `राज करेगा रोबोट´ कहानी में मानवों का नामोनिशान मिटाने की योजना इसलिए बनाई जाती है कि ``लालची, लोभी, घमण्डी, स्वार्थी मानवों का सर्वनाश ही हमारा मुख्य ध्येय होगा।`` लेखक वर्तमान युग के मानवों में इन अमानवीय दुर्गुणों के अतिचार से मुक्त पूर्ण मानवीय सभ्यता का स्वप्न देखता है। बीसवीं शताब्दी के दो विश्वयुद्धों में व्यापक नरसंहार के बाद दुनिया भर के संवदेनशील बुद्धिजीवी विश्व के समस्त देशों के एक शासनतंत्र की सम्भावना तलाशने लगे थे। इसी कहानी में अरविन्द मिश्र ने केवल एक विश्लेषण के माध्यम से उस परिकल्पना का संकेत किया है। रोबो आक्रमण से बचाव के लिए बुलाई गयी बैठक को `वैश्विक सरकार के मुखिया´ संबोधित कर रहे थे। संकेत की व्यंजना स्पष्ट है कि एक होने के कारण मानव बच सके।
`अतिम दृश्य´ कहानी `मेटेरियल ट्रांसमिशन´ की सम्भावना पर आधारित कहानी है। अनेक नाटक और फिल्मी कथानक कहानी की रचना प्रक्रिया के शिल्प में आते हैं। अन्त में दर्शक सुखद एहसास से भर जाता है, यह देखकर कि नाटक तो पूरा हो गया। इसी विषय पर कहानी लिखने वाला लेखक अपने मित्र से बात करता है। अमेरिकी मित्र विपिन की बात होती है। वह इसी प्रक्रिया से अमेरिका से आता है। कहानी के विषय में चर्चा सुनता है, करता है। कहानी का अंत होता है लेखक के बाथरूम जाने से। अमेरिका पहुँचकर पलभर बाद विपिन वहाँ से फोन करके मेटीरियल ट्रांसमिशन का प्रत्यक्ष प्रमाण देता है। पाठक मंत्रमुग्ध होकर `मैटेरियल ट्रांसमिशन´ का चमत्कार देखता है। सुगठित शिल्प में रची यह कहानी विज्ञान की अपूर्व क्षमता व्यंजित कर देती है।
हिमालय की ऊँचाइयों पर `येती´ नामक प्रजाति के होने की अनेक कथाएँ प्रचलित है। `कायान्तरण´ कहानी एक जीव वैज्ञानिक तथ्य पर रची गयी सम्भावना है। `सैलामेण्डर अपने लार्वा रूप में ही प्रजनन करता है ... ...ऐम्बायोस्टोमा सैलामेन्डर का स्थायी लार्वारूप बनकर प्रजनन करने लगता है।´ अरविन्द मिश्र एक सम्भावना पर काम करते हुए अपने मित्र के हेलीकाप्टर दुर्घटना में बचकर येती परिवार में पहुँचने और `येती´ में कायान्तरित हो जाने की कथा गढ़ लेते हैं। पाठक चमत्कृत होकर अपने और वानर प्रजाति के सम्बन्ध पर सोचने लगता है। पूरी कहानी पत्र शैली में लिखी गयी है, कायान्तरित व्यक्ति का पत्र लेखक के नाम और लेखक का पत्र कहानी के पाठको के नाम। यह शैली, कहानी की विश्वसनीयता को बचाए रखती है।
`आपरेशन कामदमन´ कहानी सर्जनात्मकता और कामेच्छा के अभेद्य सम्बन्ध की मनोवैज्ञानिक कथा है। सर्जनात्मक साहित्य की महत्ता स्वीकार करके कुछ वैज्ञानिक चिन्ता करते हैं कि लेखक काम की पूर्ति में अपनी ऊर्जा का अपव्यय कर देते हैं। इसलिए कुछ लेखकों की सहमति से उनकी कामेच्छा आपरेशन करके खत्म कर दी जाती है परिणाम? वे सभी स्वस्थ, प्रसन्नचित्त और निरोगी थे, किन्तु उनके रचने की चाह का लोप हो गया सा लगता था।´´ भारतीय परम्परा पूरी सृष्टि को काम-कामना का ही परिणाम मानती है। महाकाव्य `कामायनी´ में जयशंकर प्रसाद की स्पष्ट घोषणा है-
काम मंगल से मंडित श्रेय, सर्ग (सृष्टि) इच्छा का है परिणाम। तिरस्कृत कर इसको तुम भूल बनाते हों असफल भव-धाम।।
अरविन्द मिश्र ने अपनी कहानी में इस सत्य का मार्मिक व्यंजना की है। `एक और क्रौंच-वध´ में वैज्ञानिक की निर्ममता को प्रेम की कोमल अनुभूति के हाथों पराजित होना पड़ता है।
`अछूत´ कहानी में एक अद्भुत उड़ान है, कल्पना की। सुदूर किसी ग्रह पर सारा काम बहुत उन्नत सभ्यता के लोग अति उन्नत तकनीकी के माध्यम से करते हैं। पृथ्वी के एक वैज्ञानिक उस सुदूर ग्रह के वासी एक परिवार तक अपना संदेश पहुँचा देते हैं कि अपना विवाह किसी उन्नत ग्रह की वैज्ञानिक युवती से करना चाहते हैं। उधर से भी युवती और उसके माता-पिता सहमत हो जाते हैं। किन्तु पृथ्वी से विशेष यान द्वारा विवाह के लिए उस ग्रह पर पहुँचते ही पता चलता है कि वहाँ भी शूद्र और अछूत की समस्या पृथ्वी के देश भारत की तरह ही घृणित रूप में फलफूल रही हैं। कथाकार इस अमानवीय प्रथा को अस्वीकार मानते हैं। किन्तु यह भूल जाते हैं कि इतनी उन्नत अवस्था में यह कोढ़ रह ही नहीं सकता। `धर्म पुत्र´ `अन्तरक्षि कोकिला´ आदि कहानियाँ वैज्ञानिक आविष्कारों की सम्भाव्यता के साथ पाठक का भरपूर मनोरंजन करती हैं।
डॉ0 अरविन्द वैज्ञानिक हैं और कथाकार भी। अपने दोनों रूपों के बीच सहज संतुलन स्थापित कर लेने के कारण ही वे अपनी कहानियों के माध्यम से वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवीय संवेदना का विकास करने में सफल हो रहे हैं।
रामदेव शुक्ल
शीतल युयश, राप्ती चौक, आरोग्य मंदिर
गोरखपुर-273003
(मूल कृति-एक और क्रौंचवध, प्रथम संस्करण, 1998, तृतीय नव-संस्करण, 2008, मूल्य रु0 125/- पृष्ठ 94, प्रकाशक : लोक साधना केन्द्र, वाराणसी) वितरक : विश्व हिन्दी पीठ, 3/16, आवास विकास कालोनी, कबीर नगर, वाराणसी-221005 )एक और समीक्षा ब्लागर अनूप शुक्ल द्वारा