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Wednesday, November 23, 2011

Mythological Ideas for SF Story Themes: A Novel Approach of Effective Science Communication among Indian SF Audience


Mythological Ideas for SF Story Themes: A Novel Approach of Effective Science Communication among Indian SF Audience
(Delhi,10 - 12 January 2012) 


Indian mythology as contained in Indian scriptures abounds in imaginative ideas. Carl Sagan was very impressed by these sources of ancient knowledge and once appealed SF writers to delve deep into Indian mythology to get original SF theme ideas. Many of such imaginative dreams of our ancestors are still in queue to be realized in want of appropriate technology though many have already seen the light of the day!

There are extrapolations, imaginative themes, and descriptions of gadgets in contemporary sf and in Indian mythology often quite alike. In Ramayan for example, there is a description of a very special kind of aero plane infused with artificial intelligence and emotions named Puspak Viman (Remember, Rendezvous with Rama by Clarke?) . Puspak Viman also possesses a vacant seat always for any last minute VIP entrant! Sudarshan Chakra (a kind of revolving disc) and specially designed arrows used by Lord Krishna and Lord Rama in war fields return to them immediately after hitting the target (Guided Missiles!). Maya Yuddhaa (A kind of illusory /virtual  war) as described in the epic Ramayan causes no real damage to enemy soldiers but is practiced only to frighten enemies who ultimately surrender in such fearful situations! These stories have been very popular among masses and could very well be used in modern Sf with ingenuity in order to woo Indian SF audience.

A survey was made to find out such imaginative ideas in our scriptures for using them as Sf themes as an approach to attract Indian audience for effective science communication. Findings shall be presented. 



(Reviewer’s comments) The flow of ideas from myths to SF ought to be to increase the scientific temper rather than ‘romaticise’ the past by anachronistic reconstructions of the past using present day scientific knowledge. The mythology ought to provide ideas for new scientific theories and new technologies rather than legitamising the past ‘achievements’ to the extent of dulling the present efforts. Author is advised to keep this key difference in writing this paper.Efforts should be to trace the ‘know-why’ of the mythical objects to (re) construct them in the present rather than ‘know-what’ of these objects.



Sunday, February 21, 2010

द बीस्ट विथ नाईन बिलियन फीट -एक समीक्षा

 समीक्षा 
द बीस्ट विथ नाईन  बिलियन फीट
( साईंस फिक्शन उपन्यास )
उपन्यासकार  -अनिल मेनन
यंग जुबान प्रकाशन (२००९)
१२८ बी ,शाहपुर जाट 
नई दिल्ली 
मूल्य -२९५,पृष्ठ -२५९

अनिल मेनन की 'द बीस्ट विथ नईं बिलियन फीट ' एक हैरतंगेज नईं दुनिया 'की कहानी है जो २०४० में वजूद में आती है .इस दुनिया की जो दहशतनाक परिकल्पना उपन्यास में प्रस्तुत हुई है उसके मुताबिक़ वह दुनिया होगी  जीन परिवर्धित /संशोधित मानवों की जो तब तक निश्चित ही नौ अरब तक का आंकड़ा छू  रहे होंगे -यह उपन्यास एक विज्ञानं कथा प्रेमी को निश्चित ही आल्डुअस हक्सले की कालजयी कृति ब्रेव न्यू वर्ल्ड की याद दिलायेगी और उसी सोच के एक विस्तारित नए और आधुनिक /समकालीन संस्करण के रूप में अपना छाप पाठकों पर छोड़ेगी . जीवों को जीन में परिवर्तन से उनमें मनोवांछित तब्दीली  अब हकीकत में बदल  चुकी हैं  -जेनेटिकली माडीफायिड  आर्गेनिजम(जी एम ओ ) अब तरह तरह के रूपं रंग में हमारे जन जीवन का हिस्सा बनने लगे हैं -खाने के मेज तक उनकी पहुँच हो रही है और   शायद  शयन कक्ष भी उनसे जायदा दूर नहीं रह गया है .....मतलब वे अब मनुष्य की दैनंदिन जिन्दगी का हिस्सा बनते जा रहे हैं .

अगर यह सिलसिला निर्बाध चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब डाली सरीखे पशु -पक्षी ही नहीं मनचाहे गुणों अवगुणों वाले मनुष्यों के  जीन संवर्धित रूपों के निर्माण को भी हरी झंडी  मिल जायेगी -अनिल मेनन जो एक जाने माने विज्ञान कथाकार हैं इसी मुद्दे को अपने इस पहले उपन्यास की थीम बनाते हैं .उपन्यास की लोकेशन भारत  के पुणे शहर से लेकर उत्तरी ध्रुव से करीब ढाई हजार किलोमीटर की दूरी  पर स्वीडेन में बसाये जा रहे एक नए शहर नुर्थ (न्यू अर्थ ) तक फैली हुई है -वह क्षेत्र हिमाच्छादित है और उपन्यास का एक प्रमुख पात्र आडी (आदि) जो मनुष्य के जीनीकरण का आरम्भ है (अतः आदि! ) कथा के अंत तक भी उपन्यास के आकर्षण /विकर्षण का केंद्र बिंदु बना रहता है .वहीं वह एक भयंकर दुस्वप्न देखता है -जैसे कोई नौ अरब आँखों ,ह्रदय और पैरों वाला राक्षस (जीन संवर्धित दानवता!  ) बढा चला आ रहा है उसकी ओर और एक  महिला पात्र विस्पला उसे विनष्ट करने को आगे बढ रही है -यह  दृश्य -प्रतीति देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर मर्दन के भारतीय मिथक सा है जिसे उपन्यासकार ने जानबूझकर या अनजाने ही चित्रित कर  दिया है .शायद  इसलिए कि वह भी एक  हिन्दू मनसा  भारतीय है जिसके अवचेतन पर भारतीय  मिथकों का प्रभाव है ही ....याद है मेरी शेली के 'फ्रैकेंनस्टीन' में भी डॉ. फ्रैंन्केंस्टीन का प्रयाण स्थल एक ऐसा ही बर्फीला लैंडस्केप रहता है जहां उपन्यास का केन्द्रीय दानव पात्र वहां प्रगट होता है ?क्या आदि के स्वप्न के भयंकर और भयावने दानव का भी समान  बर्फीले लैंडस्केप में प्रगट होना रचनाकार के एक दूसरे अवचेतन के लिपि बद्ध होते जाने का संयोग मात्र ही  तो नहीं  है ?

उपन्यास पात्र बहुल है -पढ़ते वक्त कभी कभी थोड़ी खीझ भी होती है और आश्चर्य भी कि इतने पात्रों के चरित्र -चित्रण का निर्वाह उपन्यासकार कैसे कर पायेगा -मगर कहानी के अग्रसर होने पर सहज ही  पात्र कम होने लगते हैं .सिवान भाऊ मुख्य चरित्रों में से हैं जो जीन संवर्धन प्रयोगों को 'मुक्त सोर्स' बनाए रखने के हिमायती हैं और सक्रिय राजनीति में उतर आते हैं -राजनीतिक  विद्वेष के शिकार होते हैं मगर फिर अपनी मनमाफिक पार्टी के पुनः  सत्ता में आने पर प्रतिष्ठित हो जाते हैं -उनकी धुर विरोधी महिला  पात्र विस्पला जो "शुद्ध जीन " अभियान की जनक है वह जीन संवर्धित सामानों को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने में व्यावसायिक हितों को भी देखती है -वह एक दूसरे प्रोजेक्ट पर भी काम करती है जिसमें मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रंणाली को उद्वेलित कर उसकी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया पर विराम लगाने की जुगत है .और इस स्वप्न को चरितार्थ करने के लिए वह सिवान भाऊ को जिम्मा देती हैं मगर सिवान भाऊ इस परियोजना से हाँथ खींच लेते हैं क्योकि उन्हें ऐसा आभास हो जाता  है कि इससे मनुष्य की बौद्धिकता ,उसके संज्ञात्मक शक्ति,भावनाओं पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है .आदि ,सिवान भाऊ का एक ऐसा ही हतभाग्य पुत्र है जिस पर उनके द्वारा गर्भावस्था के दौरान प्रयोग परीक्षण किया गया था -सिवान भाऊ इस तरह एक तरह से ग्लानी बोध से ग्रस्त हैं  और इस तथ्य का खुलासा होने पर आदि भी अपने पिता के प्रति विद्रोह कर उनके धुर विरोधी विस्पला का दामन थाम लेता है .

जी हाँ ,पात्रों की तो भरमार है -आदि, तारा भाई -बहन ,रिया और फ्रैंसिस विस्पला के कोखज  नहीं केवल अंडज और जेनेटिकली माडीफायिड पुत्र -पुत्री ,सिवान भाऊ का चहेता पुलिस अधिकारी प्रणय ,सिवान की पत्नी उषा ,संस्कृत अध्यापक अय्यर जी,सिवान की बहन सीता तथा और भी ढेर सारे गौण और मुखर पात्र - ये सब उपन्यास में आते रहते हैं और कथानक आगे सरकता रहता है कभी मंथर तो ज्यादातर तीव्र गति से .....लेकिन जिस कुशलता और सिद्धहस्तस्ता से उपन्यासकार ने इन ढेर सारे पात्रों को कथानक में बुना है वह काबिले तारीफ़ है .

साईंस फिक्शन की पृष्ठभूमि पाठकों के लिए काफी अनचीन्ही होती है क्योकि वह मौजूदा दुनियां से ताल्लुक नही रखती है -इस उपन्यास में भी उपन्यास के विभिन्न लैंडस्केप, लोकेशन  और समूची पृष्ठभूमि को तैयार करने में उपन्यासकार का घोर परिश्रम दिखता है -अजनबी दुनिया के अजनबी लोग ,अजनबी वस्तुएं ,बोलते बतियाते स्मार्ट घर ,पुष्पक विमान सरीखा  अनुभूतियों से युक्त यान लिंक्स,बुद्धिमान खिलौने -जैसे एक जी एम तोता जो उपन्यास की मुख्यधारा का पात्र बन जाता है ,विष वृक्ष जिसके दंश हाथी तक मार डालने में सक्षम हैं -लाहू द्वीप तक जाने के लिए होलोग्राफिक इमेज प्रक्षेपण तकनीक ,वहां की जी एम शार्कें -यह सब एक आश्चर्यलोक की सैर से कम नहीं है -आज भी कहाँ हैं वजूद में ऐसी दुनिया? 

उपन्यास के बहुल पात्र और उसकी वैश्विक भाषा (यह कहने भर को अंगरेजी का उपन्यास है ) -संस्कृत ,जर्मन ,स्वीडिश ,हिन्दी .और हाँ कथा माध्यम के रूप में मौजूद अंगरेजी इस उपन्यास में समेकित होकर 'अनेकता में एकता' का ही मानों भारतीय उद्घोष करते हों मगर वस्तुतः  एक वैश्विक साहित्य का प्रतिमान /मानदंड भी प्रस्तुत करते हैं .कथानक बच्चों के मिलने जुलने और उनके कोमल अनुभव संसार से आरम्भ होकर विस्तार पाता है -जो शायद लेखक के बचपन के ही अवचेतन के तमाम पृष्ठों का ही  खुलते जाने जैसा लगता है -   संवाद शैली ही कथा प्रवाह का मुख्य शिल्प है .
सचमुच एक बेजोड़ कृति  

Saturday, December 19, 2009

अवतार :मिथक और भविष्य की प्रौद्योगिकी का संगम!

अभी अभी अवतार फ़िल्म देख कर लौटा हूँ -बच्चों ने आज मेरे जन्म दिन पर यह मूवी दर्शन मुझे बतौर उपहार दिया! हालीवुड की इस फ़िल्म को लेकर कई दिनों से काफी हल्ला गुल्ला  मचा हुआ था और बनारस में तो कल कई हालों  में इसके शो का  हाउस फुल था -टिकट के लिए मारामारी मची थी ! यह विज्ञान कथा फिल्मों के प्रति बढ़ती रुझान का संकेत है ,यद्यपि इसके पीछे एक सुगठित प्रचार/व्यवसाय   तंत्र काम कर रहा है ! अफ़सोस है यह फ़िल्म भविष्य  ( 2154 ई) के एक एलियन सभ्यता से मुठभेड़ की कहानी है -दोस्ताना मिलाप नहीं है जिसके आईजक आजिमोव  एक बड़े पक्षधर थे! यह खनिज संपदा से उत्तरोत्तर श्रीहीन होती  भविष्य की धरती की कहानी है, जब एक दुर्लभ खनिज अनॉब्टेनियम की खोज के लिए अमेरिका से एक सैन्य अभियान के तहत अल्फ़ा सेंटोरी तारा मंडल के ग्रह पैन्डोरा पर एक सैन्य कुमुक भेजी जाती है ! वहां की यात्रा में ६ महीने लगते हैं!अन्तरिक्ष सैन्य यात्री यह सफ़र विशेषीकृत बंद प्रशीतित कक्षों में समाधिस्थ अवस्थाओं में पूरा करते हैं !


पैन्डोरा के मूलवासी उस स्थान को नहीं छोड़ना चाहते जहाँ से उत्खनन के जरिये वह दुर्लभ खनिज निकाला जाना है ! केवल सैन्य कार्यवाही ही एक मात्र विकल्प लगती है और परियोजना के पीछे लगे धन्ना सेठ इसकी इजाजत दे देते हैं ! मगर एक जैवविद महिला वैज्ञानिक मूल वासियों को समझा बुझा कर उस जगह को छोड़ने के अपने एक प्लान को भी आजामाना चाहती है जो सैन्य अभियान के मुखिया को महज एक बचकाना और हास्यास्पद प्रयास लगता है ! जैव वैज्ञानिकों और सेना के आकाओं में यह संवाद हीनता मानो विज्ञान कथाओं की एक पुरानी और  जानी पहचानी परिपाटी सी बन चुकी है . तो योजना यह बनती है कि किसी बहाने से कुछ ऐसे घुसपैठियों को  स्थानीय मूल निवासियों के बीच भेज दिया जाय जो उन सरीखे ही हों और उनमें घुलमिलकर भेदिये का काम कर सकें और  उस खनिज -समृद्ध जगह से उन्हें  बिना प्रतिरोध विस्थापित होने को राजी कर सकें !मगर ऐसा करने में बहुत खतरे हैं ,क्योंकि वे बहुत आक्रामक हैं ! तो तय यह पाया जाता है कि उनकी ही तरह हूबहू दिखने और आचरण वाला व्यक्ति उनके बीच भेजा जाय ! इसलिए उनका डी एन ये और पृथ्वी वासी नायक के   डी एन ये के मिश्रण से नायक का ही एक नया "अवतार" बनाया गया और उसमें नायक के मस्तिष्क की कार्यात्मक प्रतिकृति इम्प्लांट कर दी जाती  है  ! अब नायक को एक जगह प्रायोगिक बक्से में रखते हुये उसके मष्तिष्क के सहारे उसके अवतार को संचालित करने के काम को अंजाम  दिया जाता है !यह  अवतार उन मूल वासियों के बीच घुसपैठ बनाने में सफल तो होता है  -पर एक मूल निवासिनी के प्यार के पचड़े में पड़ कर अभियान का  विद्रोही भी हो जाता है  और उन मूल निवासियों की रक्षा को समर्पित हो जाता है  ! जैवविद की इस योजना के असफल होने पर सैन्य कार्यवाही अपरिहार्य हो जाती है  -मगर धरती वासियों को मुंह की खानी  पड़ती  है  और वापस धरती पर भागना पड़ता है  !नायक का मूल रूप भी अंतिम साँसे लेता है मगर अपने अवतार में अपनी चेतना सदा के लिए मूल वासियों को समर्पित करके !

फ़िल्म की दृश्यावलियाँ -इमेजरी जबरदस्त है -आधुनिक कम्पयूटर एनीमेशन से तरह तरह के चित्र विचित्र जीव जंतुओं की निर्मिति तो बस देखते ही बनती है -मानो अनेक मिथकीय चरित्र जीवंत हो उठे हों -रामायण काव्य काल के  भालू बन्दर ,विलुप्त डायिनोसोरों की अनेक कल्पनात्मक प्रतिकृतियाँ  ,एक अपरिचित से वातावरण  के हैरत अंगेज  पेड़ पौधे और वनस्पतियाँ चमत्कृत करती हैं -कई मिथकीय चरित्रों के कल्पित अल्ट्रा माडर्न /भविष्यत  रूप -गरुण सदृश भीमकाय उड़ाकू जीव हमें माहाभारत और रामायण काल के परिवेश में मानों ले जाते हैं ! इन दृश्यों को देखकर तो मानो अमेरिकी विज्ञान कथा लेखिका उर्सुला ली गुइन  की यह उक्ति कि विज्ञान फंतासी समकालीन पुराकथाएँ (मिथक ) ही हैं चरितार्थ लगती है!

अवतार फिल्म की  एक ख़ास बात है इसका नामकरण -और वह भी  भारतीय मिथकों से ही लिया गया है ! किसी विराट चेतना के एक अंश के रूप में धरती पर अवतरण ही अवतार का प्रगट होना है -हिन्दू मिथकों में दस प्रमुख और गौण अवतारों को लेकर कुल चौबीस अवतार अवधारित है -महज एक अवतार अभी भी भविष्य के गर्भ में है -कल्कि!  चेतना का पूंजीभूत पृथक अस्तित्व ही अवतार है -फ़िल्म का नामकरण अवतार चेतना के ऐसे ही प्रोजेक्शन का  अवधारण करता है जहां मूल व्यक्तित्व तो कहीं और हैं मगर उसका अंतरण कही और भी पुंजीभूत हो सकता है,मगर वह संचालित अपने मूल रूप से ही होता है.जैसे हिन्दू त्रिदेवों के एक देव विष्णु हैं जो अपने मूल रूप में तो क्षीर सागर में शयन  करते हैं मगर वहीं से अप्रगट ही  धरती के अपने अवतार की लीलाएं संचालित करते हैं   -फ़िल्म में नायक   का एक ऐसा ही अवतार भविष्य की वर्चुअल प्रौद्योगिकी के चलते कल्पित हुआ है ! और विज्ञान कथाओं की उस परम्परा का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें साईबर पंक कहा  जाता है -कम्प्यूटर जनित आभासी दुनिया  और मानव चेतना का युग्मित रूप ! फ़िल्म के लड़ने भिड़ने के दृश्यों में  भारी भरकम साईबोर्गों (मनुष्य -मशीन का मेल ) का भी खूब दृश्यांकन हुआ है !


ताज्जुब है अभी भी हालीवुड में साम्राज्यवादी /औपनिवेशिक श्रेष्ठता बोध को प्रदर्शित करने वाली फिल्मों का बोलबाला है -एक शांत  प्रिय देश पर एक साम्राज्यवादी दादा किस्म के देश का अधिपत्य जो हमें  बर्बर ब्रितानी आक्रमणों की याद दिलाता है अभी भी हालीवुड का एक स्थाई कथानक भाव  बना हुआ है -और वही प्रवृत्ति धरती और अपने सौर मंडल से दिक्काल की बड़ी  दूरियों  तक भी अक्षुण बनी हुई है  -क्या मनुष्य कभी नहीं सुधरेगा ? पैन्डोरा पर धरती वासियों का आक्रमण भी एक ऐसे  ही कथानक का विस्तार है और इसलिए बासी सा लगता है ! क्या पैन्डोरा वासियों से अन्य कोई मैत्री /कूटनीतिक संवाद कायम करने की सोच पर फ़िल्म नहीं  बन सकती थी ? क्या युद्ध ही अंतिम विकल्प है मानवता के सातत्य के लिए? हम युद्ध के बदले  शांति को क्या हमेशा के लिये दफ़न कर चुके -मगर क्या कीजिये बिना भयंकर मुठभेड़ /युद्ध के दृश्यों को फिल्माए फ़िल्म पैसे कैसे बटोरेगी ? आखिर इनका अंतिम मकसद तो व्यवसाय का ही हैं न ?

मैं फ़िल्म को पांच में से ढायी स्टार देता  हूँ ! और वह भी जबरदस्त दृश्यों के फिल्मांकन के लिए! भारतीय मनीषा के लिए फ़िल्म में कुछ ख़ास नहीं है !
समीक्षा के लिए यहाँ और यहाँ भी देख सकते हैं !

लेखक , निर्देशक : जेम्स कैमरॉन
कलाकार : सैम वर्दिगगटन, सिगोनी वीवर
समयावधि  : 162 मिनट 
विधा :  विज्ञान फंतासी
ट्वनटीयेथ सेंचुरी फाक्स प्रस्तुति