Saturday, July 6, 2013

'कुंभ के मेले में मंगलवासी' विज्ञान कथा संकलन का विमोचन

विगत दिनों विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद, नई दिल्ली और तस्लीम, लखनऊ तथा नेशनल बुक ट्रस्ट नयी दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में अरविन्द  मिश्र के नए विज्ञान कथा संग्रह 'कुंभ के मेले में मंगलवासी' का विमोचन रायबरेली उत्तरप्रदेश में संपन्न हुआ . विमोचन समारोह  का संचालन नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक पंकज चतुर्वेदी ने किया। इस अवसर पर डॉ0 जाकिर अली रजनीश ने मशहूर ब्लागर   बी0एस0 पाबला  द्वारा प्रेषित पुस्तक समीक्षा का पाठ किया। उन्‍होंने कहा कि यह पुस्तक विज्ञान कथाओं के बारे में पाठकों के मन में उत्कंठा जगाती है। आशा है इससे पाठकों के मन में विज्ञान कथाओं के प्रति रूचि जाग्रत होगी। 

    बी0एस0 पाबला  द्वारा प्रेषित पुस्तक समीक्षा का पाठ
अब तक मैं पुस्तकों को अपने ज्ञानवर्धन, मनोरंजन, भाषाई समझ के लिए पढ़ते समझते आया हूँ। किसी पुस्तक की समीक्षा का यह मेरा पहला अवसर है, पता नहीं पंकज चतुर्वेदी जी, डॉ जाकिर और डॉ अरविंद की अपेक्षाओं  के पैमाने पर कहाँ तक पहुँच पाऊँगा? 

69 पृष्ठों में सिमटी 11 विज्ञान गल्प कथायों वाली 'कुंभ के मेले में मंगलवासी' के पृष्ठ पलटने शुरू किए तो साढ़े पांच पृष्ठों की भूमिका देखते ही मैं नर्वस हो गया। अगर आगाज़ ऐसा है तो अंजाम कैसा होगा!दादा-दादी की कहानियों से शुरू हो ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति से होती हुई मशीनों द्वारा मनुष्य पर विजय का भय दिखाती नैनो टेक्नोलॉजी सहित क्लोनिंग के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती डॉ अरविन्द मिश्र लिखित यह भूमिका सुखांत भारतीय पौराणिक कथायों व विज्ञान के दुरूपयोग का उदाहरण भी दर्शाती है।

विज्ञान कथायों के प्रकाशन का इतिहास तथा भारत में इसकी विभिन्न विधाओं पर प्रकाश डालती यह भूमिका अपने अगले पृष्ठों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को लेखन में समाहित किए जाने का आग्रह करते, अपने सहयोगियों का आभार प्रकट करते समाप्त होती है.अब यदि मैं डॉ अरविन्द मिश्र द्वारा लिखित सभी 11 कथायों की बात करूंगा तो मामला बहुत लंबा खिंच जाएगा। इसलिए, जैसे बोलचाल की भाषा में पकते चावल की हांडी से एक दाना निकाल कर जांचा जाता है वैसे ही कोशिश करता हूँ क्रमरहित पढी गई 3 कथाओं  के प्रभाव की. 

पुस्तक की आठवीं कथा है 'सब्जबाग'. एक ऎसी कथा जिसका आरंभ विरोधी राजनैतिक पार्टी की बैठक से होता है और जिसमें सक्रिय राजनीति अपना चुके नोबेल पुरस्कार नामांकित वैज्ञानिक द्वारा प्रचलित घिसे पिटे मुद्दों की बजाए टेक्नोलॉजी के मुद्दे पर जोर देते हुए घोषणा पत्र जारी करने का सुझाव दिया जाता है।
घोषणा पत्र है भी मजेदार। हर घर को दूरसंचार से जोड़ने, एक संपूर्ण केन्द्रीय शिक्षा पाठ्क्रम द्वारा सारे देश में इंटरनेट के सहारे एक समान पढ़ाई, सौर ऊर्जा तकनीक आधारित वायु परिवहन, फसलों के विपणन हेतु व्यापक वैश्विक व्यवस्था जैसे मुद्दों पर विशेष जोर दिया जाता है. चुनाव होने पर अप्रत्याशित रूप से यह पार्टी चुनाव जीत जाती है और देशवासी हमेशा की तरह इन मुद्दों के साकार होने की उम्मीद में जीते रहते हैं।

दिवास्वप्न दिखा कर अपना उल्लू सीधा करने वालों की मानसिकता पर प्रहार करती कहानी का संदेश साफ़ दर्शाता है कि भले ही हम तकनीकी विकास की ओर बढ़ रहें हैं किन्तु मूल मानवीय भावनायों का दोहन शायद ख़त्म ना हो. 

अगली कथा 'अंतर्यामी' का क्रमांक पुस्तक में दूसरे स्थान पर है। 2045 में अपराध मुक्त भारत की घोषणा के बाद 2075 में ब्रेन प्रिंट, डिजिटल फेंसिंग जैसी व्यवस्थायों के बीच शहर में हुए तिहरे हत्याकांड की जांच करते एक पुलिस अधिकारी ने जब यह जानकारी दी कि एक नवजात शिशु का ब्रेन प्रिंट खतरनाक अपराधी से मिलता है और उसे भी उन 15 करोड़ अपराधियों जैसे अलग द्वीप में रहने भेज दिया गया है तब भी सभी को चिंता थी कि इतने कड़े कदमों के बाद भी सभ्य समाज में यह अपराध कैसे हो गया.कोई सुराग ना मिलता देख पुलिस के मुखिया, अंतर्यामी नामक एक सुपर कंप्यूटर की शरण में जाते है जो उन पंद्रह करोड़ खतरनाक अपराधियों का डाटा बैकअप से मिलान करने पर एक अपराधी के गायब होने की घोषणा करता है और उसकी छद्म पहचान भी बता देता है। हत्याओं का कारण बताया जाता है उस अपराधी द्वारा उन्नत सुरक्षा प्रणाली द्वारा अपने छद्म रूप की पहचान करने की परख का पैमाना जांचना।

मुझे यह कथा एक सटीक संदेश देने में असफल लगी. कथावस्तु भी कमजोर लगी तथा बिना किसी उचित परिणाम के अचानक समाप्त हुई कथा ने कंप्यूटर को धन्यवाद देते एक पारंपरिक भारतीय मानसिकता का ही नज़ारा पेश किया 'अन्नदाता' शीर्षक से लिखी गई कथा पुस्तक के दसवें स्थान पर है। ब्रह्मांडीय सम्राट के रूप में कृत्रिम महाबुद्धि वाले एक महा-रोबोट की सभा में एक मानव वैज्ञानिक सलाहकार लोगों के भूख से बिलबिलाने की बात करता है तो मुझे चौंकना पड़ा. टिश्यू कल्चर की सहायता से अन्न के भण्डार भरने की सलाह देते वैज्ञानिक से इतर दूर कहीं टर्मिनेटर बीजों से उत्पन्न अनाज को ऊंचे दामों में बेचने की जुगत भिडाता व्यवसायी भी आज की ही गाथा गढ़ता दिखा. 

लेकिन पारंपरिक फसलों को पुन: बीजों के रूप में उपयोग करने को लालायित किसान को संत महात्मा की शरण में जाते देख एक बार फिर मुझे भारतीय मानसिकता के, मानस पटल पर गहरे तक धंसे होने का आभास हुआ। उन महात्मा द्वारा आश्चर्जनक रूप से पारंपरिक बीज उपलब्ध करवा देना उतना मायने नहीं रखता जितना प्रकृति से छेड़छाड़ ना करने का संदेश झकझोरता है।
 विमोचन 

इन तीनों कथायों में अपने पारंपरिक मूल्यों व संपदा को बचाए रखने की छटपटाहट  साफ़ नज़र आती है और डॉ अरविन्द मिश्र ने इसे दर्शाने में कोई झिझक भी नहीं दिखाई है.2013 की प्रथम संस्करण वाली पुस्तक के हाथ में आते ही सुखद आश्चर्य हुआ इसकी कीमत को लेकर महज 55 रूपयों में आध्यात्म, धर्म आस्था जैसी भारतीय मूल्यों को समेटती 11 गल्प कथाएं अपने मूल उद्देश्य को प्रकट करने में कोई कसर नहीं छोड़तीं
नॅशनल बुक ट्रस्ट के सौजन्य से यह विज्ञान कथा संकलन 'कुंभ के मेले में मंगलवासी' अपने उद्देश्य में सफल हो यही कामना
-बी एस पाबला
भिलाई, छत्तीसगढ़