एक आम सामाजिक कहानी और विज्ञान कथा में फर्क क्या है? फ़र्क स्पष्ट है- सामाजिक कहानी जहाँ हमारे समकालीन व्यष्टि- समष्टि का दु:खदर्द बयान करती हैं, विज्ञान कथायें अमूमन भविष्य की मानवीय समस्याओं को फोकस करती हैं- उनमें काल का विपर्यय बोध भी सुस्पष्ट दीखता हैं ,अमूमन उनमें हमारा जाना पहचाना समाज, जानी पहचानी तकनीके कुछ भी नहीं होतीं .हाँ उनका वर्तमान/समकालीन धरातल से एक `गर्भनाल का सम्बन्ध' अवश्य होना चाहिए। अर्थात आज की कठिनाइयों, विडम्बनाओं और यांत्रिक तामझाम-विज्ञान और तकनीकी से वे जुड़ी भी हों अन्यथा उनके कथ्य-कथानक का अन्चीन्हापन उन्हें मिथकों के स्वर्ग-नरक के समकक्ष तक ले जा पहुँचायेगा ।
यदि कथित विज्ञान कथाओं में वर्णित परिकल्पित तकनीक के स्तर में परिवर्तन से उन्हें समकालीन (कथा प्रणयन के समय के समाज) धरातल पर लाया जा सके तो समझिए वह सचमुच विज्ञान कथा है और यदि ऐसा सायास भी सम्भव नहीं हो पा रहा है तो वह विज्ञान कथा तो नही मिथक, जादू , प्रलाप या महज गप्पबाजी कुछ भी हो सकता है। कुछ विज्ञान फंतासियाँ इसी समूह में आती हैं। उनमें विज्ञान का कुछ छौंक बघार हुआ रहता है इसलिए वे भी विज्ञान कथा के लेबेल में आ जाती हैं।
`टाइम मशीन´ एक ऐसी ही जुगत है। जिसका वजूद में आना असम्भव सा है। मगर ए0जी0 वेल्स की इस सूझ से अतीत और भविष्य का सफर सहसा ही विज्ञान सम्मत हो गया- ऑर एक अनदेखी दुनिया के अनुमानित वर्णन की कथात्मक युक्ति कथाकारों के हाथ लग गयी। पहले लोग या तो स्वप्न को अतीत या भविष्य के अवगाहन का माध्यम बनाते थे या फिर ध्यान योग की ऋतम्भरा प्रज्ञा की शरण लेते थे। क्या `टाइम मशीन´ में बैठकर महाभारत काल में पहुंचकर श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद-गीता पाठ का श्रवण लाभ लिया जा सकता है? विज्ञान फंतासी में कदाचित यह सम्भव है।