Saturday, August 25, 2007

हिंदी विज्ञान कथा का अतीत और वर्तमान

हिंदी में विज्ञान कथा का अतीत और वर्तमान मील के कई पत्थरों से आलोकित है.पहली विज्ञानं कथा पंडित अम्बिका दत्त व्यास ने १८८४ से १८८८ के बीच मध्य प्रदेश की तत्कालीन मशहूर पत्रिका पीयूष प्रवाह मे धारावाहिक रुप से लिखी थी जिसका नाम था - आश्चर्य वृत्तांत .फिर सरस्वती के अंक वर्ष१९०० मे चन्द्रलोक की यात्रा छपी जिसके लेखक थे केशव प्रसाद सिंह .ये दोनो कहानियाँ दरअसल जुल्स वरन के जर्नी टू सेंटर आफ अर्थ और जर्नी फ्राम अर्थ टू मून से काफी प्रभावित थीं .वरन की एक और कथा फाइव वीक इन वलून का भी प्रभाव चन्द्रलोक की यात्रा पर पड़ा था ,जिसमे कहानी का नायक एक गुब्बारे मे चांद की सैर को उड़ चलता है .आगे भी छिटपुट विज्ञान कथाओं का लेखन चलता रहा और हिंदी मे इस नवीन विधाकी कमान संभाली सत्यदेव परिब्राजक ,आचार्य चतुरसेन शास्त्री तथा राहुल सांकृत्यायन ,डाक्टर सम्पूर्णानंद सरीखे मनीषियों ने.चतुरसेन शास्त्री का खग्रास और सांकृत्यायन की बाइस्वी सदी [१९२४]कालजयी रचनाये हैं आगे डाक्टर नवल बिहारी मिश्र और यमुना दत्त वैष्णव अशोक का भी इस विधा के उन्नयन मे काफी योगदान रहा.डाक्टर नवल बिहारी ने जहाँ विदेशी विज्ञान कथाओं के हिंदी अनुवाद की कमान संभाली वैष्णव जी ने मौलिक विज्ञान कथाओं का ताना बाना बुना
विज्ञान कथाओं के लेखन की सतत शुरुआत पिछली सदी के सातवें दशक से दिखाई देती है जब कैलाश शाह ,देवेन्द्र मेव्वाडी ,शुकदेव प्रसाद आदि ने इस विधा को अपनी लेखनी का स्पर्श दिया ..इस समय के रचनाकारों के बारे मे मैं पहले लिख चुका हूँ .भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति कि स्थापना १९९५ मे फैजाबाद मे हुई जिसने विज्ञान कथा लेखन को संगठित स्वरूप देने का प्रयास आरम्भ किया है.डाक्टर राजीव रंजन उपाध्याय इसके अद्यक्ष और इस नाचीज को इसके संस्थापक सचिव का गुरुतर किन्तु प्रिय कार्य भार मिला है .