Thursday, August 23, 2007

विज्ञान कथा की मेरी समझ

विज्ञान कथा को लेकर प्रायः लोगो मे तरह तरह के कयास लगाए जाते हैं.भारत मे इसे लेकर काफी भ्रम की स्थिति है.कोई यह समझता है कि जैसे आग की कहानी ,कोयले की कहानी ,स्टील कि कहानी वैसे ही विज्ञान की कहानी -यानी विज्ञानं का इतिहास !मगर ऐसा तो है नही .विज्ञान कथा दीगर साहित्यिक कहानियों की तरह ही कहानी की की एक विधा है जिसमे अमूमन आने वाले कल की तसवीरें दिखने को मिलती हैं;जबकि सामाजिक कहानियों मे अतीत या वर्त्तमान की झलक देखने को मिलती है .बस अपने भविष्य दर्शन की विशेषता के ही चलते विज्ञान की कहानिया दूसरी साहित्यिक कहानियों से अलग तेवर और कलेवर रखती हैं .अन्यथा विज्ञान कथाओं और दूसरी अनेक प्रकार की कहानियों जैसे प्रेम कथाओं ,रहस्य-रोमांच और जासूसी कथाओं मे कोई तात्विक अंतर नही होता ।
मगर फिर भी विज्ञानं कथाओं की कोई सर्वमान्य परिभाषा देना एक मुश्किल काम है ,हाँ इसके बारे मे बताया या समझाया जरूर जा सकता है .महान विज्ञान कथाकार आइएसक आसिमोव के अनुसार विज्ञान कथा मानव जीवन को प्रभावित करने वाले विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संभावित परिवर्तनों को लेकर मानव मन मे उभरने वाली साहित्यिक प्रतिक्रिया है.इसमे वर्णित होनेवाली दुनिया हमारी अपनी जानी पहचानी और परिचित दुनिया नही है बल्कि आने वाली एक दुनिया हो सकती है.अब जैसे जार्ज आर्वेल नामके ब्रितानी लेखक ने अपने मशहूर उपन्यास१९८४ मे दुतरफा संवाद वाले टीवी जैसे जुगत कल्पना कर ली थी ,भले ही आज भी अपना टीवी दुतरफा न हो पाया हो कंप्यूटर तो दुतरफा हो चला है . यह दूर कि कौड़ी आर्वेल १९३९ मे ही अपने उपन्यास मे ला चुके थे।
ऐसे अनेक उदाहरण हैं .जैसे फ्रांसीसी रचनाकार जूल्स वेर्न ने चांद कि सैर का वर्णन १९६० मे ही अपने उपन्यास फ्राम अर्थ ट्टू मून मे ही कर डाला था जो सौ सालों बाद एक हकीकत बन गया.यह है विज्ञानकथा की सर्वकालिक महत्ता ,मगर यहाँ भारत मे और खासकर हिंदी मे इसे जो आदर मिलाना चाहिए था वह अभी भी नही मिल सका है जो एक अलग कथा है जिसे फिर कभी.