Science fiction in India has lately emerged as a respectable literary genre. Please join me to have a panoramic view of Indian science fiction.
Friday, February 15, 2008
विज्ञान कथा ऑर मिथक मे फर्क !
क्या सभी कथा-कहानियों जिनमें मौजूदा समाज से अलग-थलग परिवेश जुगतों, पात्रों का चित्रण होता है को `विज्ञान कथा´ का दर्जा देना उचित है? यदि ऐसा है तो हमारे कितने ही मिथकीय कथानक-वांग्मय जिनमे चित्र-विचित्र दृश्य-परिदृश्यों, पात्रों, स्वर्ग-नरक के अजब गजब कारनामों की भरमार सी है, सभी विज्ञान कथा की श्रेणी में आ जायेंगी। मगर यहाँ एक बंदिश है- क्या कथित मिथकीय घटनाओं की तकनीक में किसी भी तरह की फेरबदल से उन्हें मौजूदा प्रौद्योगिकी के स्तर से जोड़ा जा सकता है? यदि किन्हीं मामलों में इसका उत्तर हाँ है तो निसन्देह वह विशिष्ट दृश्य-दृष्टान्त भले ही `साइंस िफ़क्शन´ के फ्रेम में फिट न हो सके वह विज्ञान फंतासी की देहरी को तो छू ही लेगा। लेकिन अधिकांश मिथकों का मौजूदा/समकालीन प्रौद्योगिकी से गर्भनाल का भी सम्बन्ध नहीं पाया जाता। अत: उन्हें विज्ञान कथा की कटेगरी में रखने में हिचक सी रहती है। हा¡ उनकी शैली, कथा प्रस्तुति कई बार आधुनिक विज्ञान कथाओं की सी प्रतीति कराती है। `द लार्ड आफ द रिंग्स´ एक ऐसी ही मिथकीय विज्ञान फंतासी है।
हाँ , यह अवश्य है कि विज्ञान कथाओं के कथावस्तु (थीम) के लिए मिथकों में माथा पच्ची की जा सकती है। उनमें कई ऐसी सूझें, युक्तियाँ -जुगते हो सकती हैं जिनसे विज्ञान कथाओं की थीम-आइडिया मिल सकती है। अन्तर्वंशीय (इन्टरजेनेरिक) शल्य प्रत्यारोपण (गणेश), आयोनिज जनन-क्लोनिंग (कौरवों की उत्पत्ति,रक्तबीज-महिषासुर) माया (वर्चुअल ) युद्ध (मेघनाथ का इस युद्ध विद्या में पारंगत होना) आदि अद्भुत संकल्पनायें हैं जिनकी आज की विज्ञान कथाओं में भी व्याप्ति है। मेरी एक कथा- `अलविदा प्रोफेसर´ एक दैत्य के भय के चलते प्रद्युम्न को शीघ्र ही युवा बना देने के अनुष्ठान की कथा से प्रेरित है। उर्सुला ली गुईन नामकी अमेरिकी विज्ञान कथाकार मिथकों को `समकालीन´ विज्ञान कथा का दर्जा देती हैं क्योंकि उनमें भविष्य की दुनिया -तकनीक की सम्भावनाओं की झलक होती है। कार्ल सागान जिन्हें कभी अमेरिका का ``शो मैन आफ़´´ साइंस कहा जाता था, भारतीय मिथकों के मुरीद थे।
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