ऋग्वेद मे अकेले इस एक वनस्पति को देवता का दर्जा दे दिया गया है जहाँ इसकी प्रशंसा मे अनेक छंद कहे गए हैं.इसकी स्तुति मे बताया गया है कि कैसे इसके उपभोग से देवताओं के राजा इन्द्र मे इतनी ताकत आ जाती है किवे असुरों की बड़ी सेना को परास्त कर देते हैं .सब देवता सोमरस के दीवाने हैं .इसके आकंठ पान के लिए अनुभवीऔर प्रशिक्षित ब्राह्मणों के द्वारा सोम अनुष्ठान का भी विधान वर्णित है ,मजे की बात है कि ईरानी धर्मग्रन्थअवेस्ता मे यही सोम ,होम उच्चारित होता है .हम आज भी होम करते हैं और देवताओं को सोमरस की परम्परा मेकोई पेय अर्पित करते हैं -पंचगव्य आदि .मगर सोमरस वाली बात इसमे कहाँ ? आख़िर हम सोमरस ही आज केहोम आदि अनुष्ठानों मे क्यों अर्पित नही करते ? अरे भाई हमे मालूम तो हो कि यह सोम भला है कौन सी बूटी ? यह संशय रामायण युग मे भी बना रहता है और राम-लक्ष्मन की प्राण रक्षा के लिए हनुमान हिमालय तक जाकरभी सोम जो रामायण मे मृत संजीवनी के नाम से वर्णित है को जब नही पहचान पाते तो पूरा पर्वत ही उखाड़ लातेहैं ।
मशहूर ब्रितानी लेखक आल्दुअस हक्सले ने अपनी विश्व प्रसिद्ध कृति ब्रेव न्यू वर्ल्ड मे सोम का जमकर उल्लेखकिया है -उपन्यास के पात्र तनाव टालने के लिए दनादन सोमा टैबलेट खाते हैं -मतलब सोमरस की परम्परा मे हीसोम टिकिया भी हक्सले के कल्पना लोक मे आ चुकी थी .उपन्यास के पढ़ने के साथ ही मैंने भी सोम बूटी कीखोज करीब दो दशक पहले शुरू कर दी थी ,मगर अभी भी कामयाबी नही मिली है .आप मे से क्या कोई मेहरबानीकर मेरी मदद करेंगे?