Saturday, August 22, 2009

सच्चाई से रूबरू होती विज्ञान फंतासी !

खबर खौफनाक है ! अमेरिका ने मनुष्य के अन्वेषित जीन सीक्वेंस को पेटेंट देना शुरू कर दिया है ! क्योकि जिन्हें भी पेटेंट मिलेगा वे व्यक्ति या कंपनियां इन पर एकाधिकार जमायेगी /जतायेगी -इनके उपयोगों इनके रासायनिक संघटन पर दावा करेगीं -कोई दूसरा यदि बिना अनुमति इनका कोई उपयोग करेगा तो उन पर हर्जेखर्चे का जुर्मना ठोकेगी ! आप इस गफलत में न रहें कि यह पेटेंट अधिकार महज प्रयोगशाला में निर्माण किए जीन सीक्वेंसों पर ही लागू है -नहीं जनाब यह कुदरती तौर पर पाये जाने वाले दमा ,कोलन कैंसर ,अलझीमर के पहचान लिए गए जीनों पर भी लागू हो गया है !

अभी पिछले दिनों ही न्यूयार्क टाइम्स ने वह खबर छापी थी जिसके मुताबिक स्टैनफोर्ड के एक जीन इंजिनियर ने मनुष्य के जीन सीक्वेंस तैयार करने की बहुत सस्ती प्राविधि तैयार कर ली है जिस पर पहले के भारी भरकम खर्चे दो करोड़ डालर की तुलना में महज ५० हजार डालर में ही यह काम अंजाम में लाया जा चुका है ! एक कम्पनी KHOME ( उच्चारण -नो -मी ) ने यही काम और भी सस्ते में कर देने के दावे किए हैं .

जीनोम क्रान्ति के इन संभावनाओं पर बहस शुरू होना लाजिमी ही है -पहले तो कहा जा रहा था कि जीन क्रान्ति लोगों तक जीन की जानकारी मुक्त रूप से और प्रजातांत्रिक तरीके से मुहैया करा देगी -मगर अब जीनों के पेटेंट की मुहिम से उन दावों की कलई खुलने लगी है -बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां जीन चिकित्सा के अपने अरबों डालर की कमाई ऐसे ही नही छोड़ने वाली हैं ! हमें उनकी मोटी रकम चुकानी होगी !

पूरी ख़बर यहाँ पर


3 comments:

  1. अरे... किस दुनिया मे हैं आप्? अमरीका मे तो जीन पेटेंट पिछ्ले १०० सालों से हो रहे है. . . न हो विश्वास तो खुद देखें

    The United States has been patenting chemical compositions based upon human extractions for over 100 years. The first patent for such a chemical was granted in 1907 for adrenaline.

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  2. Great info. Must educated people about such dangers, this is really dangerous before other countries start following the suite.

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