आईये जाने क्या है विज्ञान कथा पर मेरी यह अन्तिम विनम्र प्रस्तुति है .अभी फिलहाल इतना ही ..हो सकता है मेरा यह टिटिट्भ प्रयास कुछ लोगों मे इस उपेक्षित हिन्दी साहित्य की विधा के प्रति वात्सल्य जगा सके ........
कुछ समीक्षकों का मानना है कि फिक्शन जो लातिनी मूल का शब्द है और जिसका अर्थ है ``आविष्कार करना´´ विचारों (आईडिया) से सम्बन्धित है जबकि ग्रीक मूल के शब्द `फैन्टेसी´ जिसका अर्थ है कल्पना करना, छाया चित्रण यानी `इमेजेज´ का भाव लिये हुए है। आशय यह कि साइंस फिक्शन´ विचार प्रधान कथायें हैं तो वहीं `साइंस फंतासी´ दृश्य प्रधान प्रस्तुति है। इस अर्थ में भी साइंस फिक्शन-फंतासी के विभेद को समझना आसान है। गौरतलब है मिथक भी दृश्य प्रधानता लिये होते हैं। अर्थात मिथकों और विज्ञान फंतासी में काफी हद तक समानता सी है।
विज्ञान कथायें बिना इस `लेबेल´ के भी मुख्यधारा के साहित्य में यदा-कदा दिखती रही हैं- पहले के अनेक कथाकार `विज्ञान कथा´ के `नामकरण´ से ही अपरिचित थे- यह तो कालान्तर में इस विधा की विशिष्ट पहचान को बनाये रखने के लिए `विधागत विज्ञान कथा´ (जानरे एसण्एफण्) का एक अलग वर्गीकरण ही बना दिया गया है। पर मेरी शैली की `फ्रेन्केन्स्टीन´ (1818) आल्डुअस हक्सले की `द ब्रेव न्यू वल्र्ड´ (1938) जार्ज आर्वेल का `एनिमल फार्म´ और '1984'(1960) जैसी अमर कृतियाँ मुख्य धारा के ही साहित्य के रुप में चर्चित हुईं। आज भी विज्ञान कथाओं को मुख्यधारा के साहित्य के रुप में प्रचारित प्रसारित करने की हिमायत हो रही है। हमारे यहाँ राहुल सांकृत्यायन की `बाईसवीं सदी´ (1924), आचार्य चतुरसेन शास्त्री का `खग्रास´ (1960), डॉ0 सम्पूर्णानन्द का `धरती से सप्तिर्षमण्डल´ (1970) मुख्यधारा की बेहतरीन विज्ञान कथायें रही हैं।डा0 राकेश गुप्त (ग्रन्थायन, अलीगढ़) ने धर्मयुग में प्रकाशित इस नाचीज की एक आरिम्भक वैज्ञानिक कहानी-'एक ऑर क्रौंचवध '(1989) को नवें दशक की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में स्थान दिया है .
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रोचक। मैं यह सोच रहा था कि हिन्दी ब्लॉग पाठक को जो पुस्तकें आपने बताई हैं उनके अंश या उनके कथानक संक्षेपण एक पोस्ट के रूप में प्रस्तुत हों।
ReplyDeleteइतना सशक्त है यह विज्ञान कथा साहित्य कि पढ़ने वाला बंध जायेगा।
और वास्तव में वह बहुत सुन्दर होगा - आज चलने वाली ब्लॉग जगत की "सिद्धान्त बेस्ड किच किच" से कहीं बेहतर!
मैंने इनमें केवल दो पुस्तकें - फ्रैंकेस्टीन और एनिमल फार्म पढ़ी हैं। फ्रैंकेस्टीन तो विज्ञान कथा है पर मेरे विचार में ऐनिमल फार्म साम्यवाद पर व्यंग (यथार्त) है। इसे विज्ञान कथा कह कर इसके महत्व को कम करना है।
ReplyDeleteplease publish ur short story "KRAUNCH BADH" in this blog a lot of time has been passed to read.
ReplyDeleteबहुत अच्छा है आपका प्रयास किंतु बन्धु पीठ दर्द वाले नुस्खे आपने प्रकाशित नही किए जिसके बारे मी आपने काफी सोध कर रखा है was that myth or reality?
ReplyDeleteज्ञान जी ,मैं जरूर पुस्तक अंश प्रस्तुत करूंगा ,अभी उन्मुक्त जी के विज्ञान कथा संबन्धी पोस्ट की प्रतीक्षा है .
ReplyDeleteउन्मुक्त जी ,एनीमल फार्म के बारे मे आप से सहमत हूँ ,यह मेनस्ट्रीम का उपन्यास है कुछ लोगों को इसमे विज्ञान कथा जैसा कुछ लगता है -इसकी वह बहु उधृत उक्ति तो याद होगी -आल एनिमल्स आर इक्वल बट सम एनिमल्स आर मोर एक्वल देन अदर्स .....
अरुण प्रकाश जी ,विषयगत बात तक ही सीमित रहना उपुक्त होगा ,क्रौंच वध जरूर पढायेंगे,सब्र करें
सभी को धन्यवाद !
लगे हाथ "एक और क्रौंच वध" के सम्बंध में मेरी भी फरमाइश नोट की जाए।
ReplyDeleteइस रोचक लेखमाला के सुरूचिपूर्ण समापन पर हार्दिक बधाई।