Sunday, December 21, 2008

राष्ट्रीय परिचर्चा:विज्ञान कथा - अतीत, वर्तमान एवं भविष्य !

राष्ट्रीय परिचर्चा - एक रिपोर्ट

विज्ञान कथा - अतीत, वर्तमान एवं भविष्य
मंचासीन अतिथि (बाएं से -सर्वश्री वाई .एच .देशपांडे ,डॉ .मनोज पटैरिया (अध्यक्ष ) ,प्रोफेसर एस एन दुबे (मुख्य अतिथि ),हेमंत कुमार ,सुश्री डॉ मधु पन्त ,डॉ राजीव रंजन उपाध्याय ,डॉ अरविन्द मिश्रा (संयोजक)

नवम्बर माह (10-14 नवम्बर, 08) में संजय मोटेल्स एण्ड रिसोट्र्स, बाबतपुर, वाराणसी में उक्त विषयक पहली राष्ट्रीय परिचर्चा सम्पन्न हुई जिसमें देश के कई प्रान्तों से विज्ञान कथाकारों/समीक्षकों ने प्रतिभाग किया। यह आयोजन राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, नई दिल्ली, (रा0पि0प्रौ0सं0प0) भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति, फैजाबाद, उ0प्र0 तथा भारतीय विज्ञान कथा अध्ययन समिति, वेल्लोर के संयुक्त प्रयासों से आहूत हुआ।
आयोजन की शुरूआत दिनांक 10 नवम्बर, 08 को प्रात: प्रतिभागियों के आगमन एवं अपराह्न में मैदागिन स्थित पराड़कर स्मृति भवन में संयोजित पत्रकार वार्ता से हुई जिसे रा0वि0प्रौ0सं0प0 के निदेशक एवं वैज्ञानिक `एफ´ डा0 मनोज पटैरिया और भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति, फैजाबाद के अध्यक्ष डा0 राजीव रंजन उपाध्याय ने सम्बोधित किया। सायंकालीन कार्यक्रमों की शुरूआत विज्ञान कथाकार ज़ीशान हैदर ज़ैदी लिखित हास्य विज्ञान नाटक `बुड्ढ़ा फ्यूचर´ के पुतल रूपान्तर के मंचन से हुआ जिसे लखनऊ से आये पुतलकार श्री अरशद उमर तथा सहयोगियों द्वारा प्रभावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया। तदनन्तर अमेरिकी फिल्म पटकथा लेखक और प्रोड्यूसर मार्क लुन्ड द्वारा खास तौर पर राष्ट्रीय परिचर्चा में ही दिखाने हेतु प्रेषित लघु फिल्म 'फर्स्ट वर्ल्ड ' का प्रीमियर शो भी हुआ। इस फिल्म की कथा धरती पर चोरी छिपे आ चुके परग्रही वासियों से सम्बन्धित है। यह फिल्म प्रतिभागी दर्शकों को बेहद पसन्द आई। रात्रि भोज के पूर्व डा0 मनोज पटैरिया द्वारा प्रतिभागियों को सम्बोधित अपने स्वागत उद्बोधन में विज्ञान कथा के समकालीन भारतीय परिदृश्य का ब्योरा प्रस्तुत करते हुये उनके वाराणसी आगमन पर शुभाशंसायें व्यक्त की गई।
यह राष्ट्रीय परिचर्चा विश्व विज्ञान दिवस पर आरम्भ हो रही थी अत: आयोजकों द्वारा इस अवसर को रेखांकित करने की दृष्टि से, चेन्नई से पधारे वैज्ञानिक डा0 नेल्लई एस मुथू के सायंकालीन व्याख्यान, `चन्द्रमा: तथ्य एवं कल्पना´ का भी समुचित प्रावधान किया गया था जिसमें चन्द्र विजय अभियानों की विस्तृत जानकारी दी गई। तदनन्तर परिचर्चा के समन्वयक/संयोजक डा0 अरविन्द मिश्र द्वारा परिचर्चा के स्परूप एवं प्रक्रिया सम्बन्धी जानकारी दी गई।
नवम्बर 08 को प्रात: 10 बजे से उद्घाटन सत्र का आरंभ हुआ जिसके मुख्य अतिथि जे0आर0एच0 विश्वविद्यालय के कुलपति और प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रोफेसर एस0एन0 दूबे थे। मराठी विज्ञान कथा लेखक डा0 वाई0एच0 देशपाण्डे ने विषय प्रवर्तन करते हुये भारतीय परिप्रेक्ष्य में विज्ञान कथा की जड़ों को तलाशते हुये पुराणों तथा विज्ञान कथाओं के साम्य की ओर इशारा किया। विशिष्ट अतिथि, बाल भवन, दिल्ली की पूर्व निदेशक डा0 मधु पन्त ने बच्चों के लिये रोचक विज्ञान कथाओं के प्रणयन पर जोर दिया। लखनऊ से आये प्रसिद्ध साहित्यकार और विशिष्ट अतिथि श्री हेमन्त कुमार ने विधागत विज्ञान कथा (GENRE SF ) और मुख्य धारा (MAINSTRAEM) के साहित्य में विज्ञान कथा की वर्तमान दशा और दिशा पर प्रतिभागियों का ध्यानाकर्षण कराया। मुख्य अतिथि प्रोफेसर एस0एन0 दूबे ने पश्चिमी विज्ञान कथा साहित्य और भारतीय विज्ञान कथा के कई तुलनात्मक पहलुओं की चर्चा की और इस विधा को भारत में विकसित करने के लिये समवेत प्रयासों का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भारतीय विज्ञान कथा को विश्व मंच पर प्रतििष्ठत करने के प्रयासों में हमें अपने आंचलिक भाषाई आग्रहों को त्यागना होगा।
उद्घाटन सत्र में ही विज्ञान कथा के अनन्य प्रेमी और माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के न्यायमूर्ति श्री यतीन्द्र सिंह का विद्वतापूर्ण आलेख ``साइंस फिक्शन: द पाइड पाइपर आफ साइंस´´ को बतौर संदेश पढ़कर श्रोताओं को सुनाया गया और आलेख की प्रति भी वितरित की गई। मुख्य अतिथि द्वारा डा0 रत्नाकर डी0 भेलकर (महाराष्ट्र) श्री हरीश गोयल (राजस्थान) तथा जीशान हैदर जैदी की विज्ञान कथा की पुस्तकों क्रमश:, `साइंस फिक़्शन: फैन्टेसी एण्ड रियलिटी´, `एक और ययाति´, कम्प्यूटर की मौत´ का विमोचन भी किया गया। डा0 मनोज पटैरिया ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में विज्ञान कथा के उन्नयन की दिशा में रा0वि0प्रौ0सं0प0, विज्ञान प्रसार एवं अन्तर्जाल पर याहू विज्ञान कथा फोरम तथा भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति एवं भारतीय विज्ञान अध्ययन समिति वेल्लोर के योगदानों को रेखांकित किया तथा कहा कि अब यहा¡ विज्ञान कथा के लिये उपयुक्त वातावरण तैयार हो रहा है। उन्होंने विज्ञान कथा को शैक्षणिक कक्षाओं और आम जन तक ले जाने के अभिनव विचारों/नवाचारों का स्वागत किया। डा0 राजीव रंजन उपाध्याय ने अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित किया। उद्घाटन सत्र केे ठीक पश्चात मुख्य अतिथि एवं अन्य प्रतिभागियों द्वारा भारतीय भाषाओं में विज्ञान कथा के प्रकाशनों की प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया गया।
पहले तकनीकी सत्र का विषय था- विज्ञान कथा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य। इस सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर एस0एम0 गुप्ता (राजस्थान) ने किया। इस सत्र में डा0 गौहर रजा (दिल्ली) ने `विज्ञान और कल्पना के अन्तर्सबन्धों तथा स्वप्नद्रष्टा की भूमिका´ पर अपना शोध आलेख पढ़ा। उन्होंंने भविष्यद्रष्टा विज्ञान कथाकार को भी समाज में एक प्रतििष्ठत स्थान/पद पर स्थापित करने की पुरजोर वकालत की। डा0 अरविन्द दुबे (लखनऊ) ने विश्व एवं भारत की पहली विज्ञान कथा कौन है, इस विषय पर विमर्श करते हुये मेरी शैली की `फ्रैन्केन्स्टीन´ को पहली विज्ञान कथा की पदवी से उतारने की सिफारिश की। डा0 अरूल अरम (चेन्नई) ने एच0जी0 वेल्स के उपन्यासों में भविष्य चित्रण के पहलू की चर्चा की। डा0 नेलई मुथू (चेन्नई) ने विज्ञान कथाओं के परिप्रेक्ष्य में चन्द्रमा पर मानव विजय के कई पहलुओं को उजागर किया। इस सत्र की सारांशक सुश्री रीमा सरवाल (दिल्ली) थीं।
भोजनोपरान्त दूसरे तकनीकी सत्र `विज्ञान कथा एक संज्ञानात्मक पहलू´ की अध्यक्षता बाल भवन नई दिल्ली की पूर्व निदेशक डा0 मधु पन्त (दिल्ली) द्वारा की गई। इस सत्र की सारांशक थींं डा0 गीता बी (राजस्थान)। इस सत्र में डा0 सी0एम0 नौटियाल (लखनऊ) ने विज्ञान कथा, फिक्शन और फंतासी के बारीक अन्तर को उदाहरणों से स्पष्ट किया। डा0 एम0 थिरुमनी (चेन्नई) ने विज्ञान की समझ बढ़ाने में विज्ञान कथा के संभावित योगदान की चर्चा की। श्री हरीश गोयल (राजस्थान) ने विभिन्न शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में विज्ञान कथा के समावेश की प्रासंगिकता पर अपना आलेख पढ़ा। मेहरदाद अनासेरी (ईरान) ने कतिपय पश्चिमी विज्ञान कथा साहित्य के भारतीय निहिताथोंZ की चर्चा की। श्री विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी (राजस्थान) ने विज्ञान कथा के स्परूप और परिभाषा के मसले पर अपने विचार व्यक्त किये। अमित सरवाल (दिल्ली) ने शैक्षणिक परिवेश में विज्ञान कथा की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया तो श्री कमलेश श्रीवास्तव (फैजाबाद, उ0प्र0) ने विज्ञान की जन समझ में विज्ञान कथाओं की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।
तीसरा तकनीकी सत्र विज्ञान कथा की नवीन प्रवृत्तियों पर आहूत था। इस सत्र की अध्यक्षता डा0 विभावरी देशपाण्डे (महाराष्ट्र) ने किया तथा डा0 तरलिका त्रिवेदी (गुजरात) ने सारांशक की भूमिका निभाई। पढ़े गये शोध आलेखों में, जापान और बंगाल के विज्ञान कथा साहित्य में अद्भुत साम्य पर सुश्री अन्वेषा माईती (पश्चिम बंगाल), तीसरी दुनिया¡ की विज्ञान कथा में उत्तर औपनिवेशिक प्रभावों पर सुश्री रीमा सरवाल (दिल्ली), बच्चों के लिये विज्ञान कथा साहित्य की समालोचना पर श्री जाकिर अली `रजनीश´ द्वारा प्रस्तुतिया¡ की गई। सुश्री एम0 श्रीविद्या एवं श्री एम0वेन्केडेशन (चेन्नई), श्री एम0 वैलीगन्थम्स एवं श्री एन0एस0 सम्पथ कुमार (चेन्नई) ने विज्ञान कथा फिल्मों पर अपने शोध पत्र पढ़े। डा0 रत्नाकर डी भेलकर (महाराष्ट्र) ने आर्थर सी क्लार्क के उपन्यासों में परग्रही सभ्यताओं के वर्णन का वृत्तान्त प्रस्तुत किया। इसी सत्र में मुख्य धारा की विज्ञान कथाओं पर अमित कुमार (गोरखपुर) तथा श्री जयप्रकाश (चेन्नई) ने भी अपने शोध पत्र पढ़े।
हाल ही में दिवंगत हुये जुरैसिक पार्क सरीखी फिल्म से भारत में विज्ञान कथा को लोकप्रिय बनाने वाले माइकेल क्रिख्टन की स्मृति में सायंकाल भारत रत्न मरहूम उस्ताद बिसमिल्ला खा¡ के भतीजे उस्ताद अली अब्बास खान के शहनाई वादन से इस महान विज्ञान कथाकार को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई और प्रोफेसर एस0एम0 गुप्ता द्वारा एक शोक प्रस्ताव भी पढ़ा गया। डा0 अरविन्द दुबे ने विज्ञान कथाओं में अन्तरिक्ष पर रोचक व्याख्यान भी दिया।
राष्ट्रीय परिचर्चा के तीसरे दिन आहूत चतुर्थ तकनीकी सत्र `विज्ञान संचार के लिए विज्ञान कथा´ की अध्यक्षता श्री जी0एस0 उनीकृष्णन नायर (केरल) द्वारा की गई तथा सारांशक डा0 अफरीना रिजवी (अलीगढ़) रहीं। डा0 गीता बी (राजस्थान) ने शिक्षण की एक जुगत के रूप में विज्ञान कथाओं का एक लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। श्री हरीश यादव (राजस्थान) ने विज्ञान कथाओं के रेडियो रुपान्तर तथा सुश्री मीनू खरे (लाखनऊ) ने रेडियो द्वारा विज्ञान कथा के माध्यम से विज्ञान के संचार पर अपने शोध आलेख पढ़े। डा0 अफरीना रिजवी ने विज्ञान कथाओं में विज्ञान की पड़ताल की। डा0 पी0एफ0 नवराज (मदुरै) ने विज्ञान संचार पर विज्ञान कथाओं के प्रभाव का एक आकलन प्रस्तुत किया। डा0 मनोज मिश्रा (जौनपुर, उ0प्र0) ने आम जन तक विज्ञान कथा की पहु¡च सुनिश्चित करने के नवाचारों का व्योरा दिया।
पांचवें सत्र `विज्ञान कथा के भविष्यत परिप्रेक्ष्य´ की अध्यक्षता गोरखपुर विश्वविद्यालय, उ0प्र0 के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आर0डी0 शुक्ला ने किया। इस सत्र में सबसे पहले श्री हेमन्त कुमार (लखनऊ) ने मुख्य धारा के हिन्दी विज्ञान कथाओं का एक संकलित विवरण प्रस्तुत करते हुये यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया कि विज्ञान कथाओं में वे सभी साहिित्यक तत्व मौजूद हैं जिनके जरिये यह विधा हिन्दी के मुख्य धारा के साहित्य में सहज ही प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकती है। डा0 तरलिका त्रिवेदी ने `विज्ञान कथा और व्यवहारिक दृष्टिकोण´ विषय पर अपना आलेख पढ़ा जिसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि विज्ञान कथाओं के जरिये समाज की नई समस्यायें दूर हो सकेंगी। सुश्री बुशरा अलवेरा ने विज्ञान कथाओं की भविष्योन्मुखता पर अपने मौलिक विचार प्रकट किये और इस कथन को रेखांकित किया कि विज्ञान कथायें सचमुच भविष्य के समाज का दर्पण हैं। श्री जी0एस0 श्रीकृष्णा (केरल) ने विज्ञान कथाओं में आम आदमी तक विज्ञान को ले जाने की अन्तनिZहित क्षमता का व्योरा दिया। श्री कमलेश मेना (राजस्थान) ने मीडिया के जरिये विज्ञान कथा संचार की रुपरेखा प्रस्तुत की। आकाशवाणी लखनऊ की कार्यक्रम अधिशासी सुश्री मीनू खरे ने सत्र का सारांश तैयार किया।
भोजनोपरान्त निवर्तमान एअर वाइस मार्शल श्री विश्वमोहन तिवारी की अध्यक्षता एवं श्री हेमन्त कुमार के संयोजन में उक्त तकनीकी सत्रों में पढ़े गये आलेखों से उभरकर आये कई मुद्दों पर विस्तृत विवेचना के लिये समानान्तर परिचर्चा टोलिया¡ गठित हुई। समानान्तर परिचर्चा टोलियों में विज्ञान कथा की परिभाषा, भारतीय स्वरूप और संभावनाओं, विज्ञान कथा में मानवीय मूल्यों का आग्रह, इस विधा की भौगोलिक/सांस्कृतिक सापेक्षता (या निरपेक्षता), विधागत या मुख्यधारा की विज्ञान कथा की विशिष्टताओं, विज्ञान कथा की वैश्विक एवं भारतीय (देशज) प्रवृत्तियों और कई अन्य परिप्रेक्ष्य तथा प्राथमिकताओं पर गहन विचार विमर्श हुआ जिससे विज्ञान कथा के बनारस दस्तावेज 08, के अभिलेखन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
डा0 मनोज पटैरिया की अध्यक्षता में `विज्ञान कथा के बनारस दस्तावेज, 08´ को मूर्त रूप देने के लिये गठित पैनेल में डा0 राजीव रंजन उपाध्याय, सुश्री डा0 गीता बी0, सुश्री रीमा सरवाल, डा0 तरलिका त्रिवेदी, डा0 अफरीना रिजवी, सुश्री मीनू खरे, जी0के0 मोहन, श्री विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी द्वारा इस महत्वपूर्ण दस्तावेज को तैयार करने का काम आरंभ हो गया है जो शीघ्र ही तैयार होकर जन सुलभ हो सकेगा।
उक्त गहन अकादमिक गतिविधियों के उपरान्त तनाव शैथिल्य के लिये आयोजकों द्वारा कई सुरूचिपूर्ण अनौपचारिक प्रतिस्पर्धाओं का भी संयोजन किया गया जिसमें पुरूष प्रतिभागियों के लिए मीन मनोरंजन तथा महिलाओं के लिए `प्रिमोर्डियल सूप बनाना´ सिम्मलित था। भारत में जीवन के उद्भव और विकास की आवधारणा पर चाल्र्स डार्विन के द्विशती समारोहों के उपलक्ष्य में `प्रिमार्डियल सूप मेकिंग´ प्रतिस्पर्धा में महिला प्रतिभागियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। विशेषज्ञ पैनेल द्वारा चयनित सूप प्रतिभागियों में रात्रि भोजन पूर्व श्री जी0एस0 उनीकृष्णन के व्याख्यान `विज्ञान कथा फिल्मों में विकासवाद: डार्विनवाद का अभ्युदय´ के दौरान सर्व किया गया। तदनन्तर आर्थर सी क्लार्क के तीसरे नियम - कोई भी उन्नत प्रौद्योगिकी जादू से अलग नहीं दिखती, थीम पर विज्ञान संचारक श्री हरीश यादव द्वारा एक सम्मोहक `जादू का शो´ भी प्रस्तुत किया गया।
राष्ट्रीय परिचर्चा के चौथे दिन डा0 राजीव रंजन उपाध्याय की अध्यक्षता में युवा रचनाकारों के लिये एक विज्ञान कथा लेखन कार्यशाला भी आयोजित हुई जिसमें 25 युवा छात्र छात्राओं/प्रतिभागियों ने विशेषज्ञों के सानिध्य में विज्ञान कथा लेखन के शिल्प एवं बारीकियों को समझा और कार्यशाला के दौरान विज्ञान कथायें भी लिखीं।
अपराह्न में आयोजित समापन समारोह में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के आई0आई0पी0 सेल के मुख्य समन्वयक प्रोफेसर पी0के0 मिश्र का समापन सम्बोधन `भविष्य की प्रौद्योगिकियों´ विषय पर आधारित रहा। मुख्य अतिथि आई0आई0टी0 के निदेशक प्रोफेसर एस0एन0 उपाध्याय ने विज्ञान कथा पर राष्ट्रीय परिचर्चा के आयोजन को भारत में इस विधा के प्रसार के प्रयासों में मील का पत्थर बताया। उन्होंने विभिन्न शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में विज्ञान कथा को अंगीकार करने की भी सिफारिश की। डा0 मनोज पटैरिया ने `विज्ञान कथा के बनारस दस्तावेज, 2008´ की आरंभिक रूपरेखा प्रस्तुत करते हुये शीघ्र ही इसे अन्तिम रूप से प्रस्तुत करने का संकल्प व्यक्त किया।
सायंकाल प्रतिभागियों ने नौका विहार करते हुये कार्तिक पूिर्णमा के अवसर पर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति पा चुके `गंगा महोत्सव´ के विशिष्ट आयोजन `देव दीपावली´ का भी अवलोकन किया। गंगा के घाटों पर सहसा प्रज्वलित हो उठे असंख्य दीपों और आतिशबाजी के अविस्मरणीय एवं मनोहारी दृश्यावलोकन एवं गंगा आरती में भाग लेने के उपरान्त सभी अतिथि प्रतिभागियों ने गंगा के किनारे ही रात्रि लोक भोज (रीवरसाईड एथनिक बार्बिक्यु डिनर ) में विशिष्ट स्थानीय व्यंजनों का लुत्फ उठाया।
अगले दिन 14 नवम्बर, 08 को प्रतिभागियों द्वारा सारनाथ में बौद्ध तीर्थ स्थल के परिभ्रमण के साथ ही अपने ढंग की यह अनूठी राष्ट्रीय विज्ञान कथा परिचर्चा सम्पन्न हो गई।

2 comments:

  1. उन्होंने विभिन्न शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में विज्ञान कथा को अंगीकार करने की भी सिफारिश की।
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    सही सिफारिश। अगर यह विषय हमारे करीकुलम में रहा होता तो हमारा नजरिया कुछ और होता।

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  2. विस्‍तृत रिपोर्ट को पढकर कार्यक्रम की स्‍मृतियॉं एक बार फिर से जीविज हो उठीं। शुक्रिया।

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