राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एन.सी.एस.टी.सी.), “विज्ञान तकनीक एण्ड डेवलेपमेन्ट इनीशियेटिव (स्टाड) तथा भारतीय विज्ञान लेखक संघ (इस्वा) द्वारा उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में 20-23 फरवरी को “रचनात्मक विधाओं द्वारा विज्ञान संचार” विषयक चार दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्टी का आयोजन किया गया। होटल मधुबन में आयोजित इस संगोष्ठी में देश भर के ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों, विज्ञान संचारकों, विज्ञान लेखकों और कथाकारों के अतिरिक्त विभिन्न विश्वविद्यालयों के जनसंचार व विज्ञान संचार विभागों के अध्यक्षों एवं विद्यार्थियों ने उक्त विषय पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये।
महामहिम राज्यपाल श्री बी0एल0 जोशी ने दीप जलाकर समारोह का उदघाटन किया। कार्यक्रम में शामिल होने वाले प्रमुख वक्ताओं में संगोष्ठी के संयोजक और राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्यौगिकी संचार परिषद के निदेशक डा0 मनोज पटैरिया, वैज्ञानिक एवं अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक प्रो0 श्रीकृष्ण जोशी, एयर मार्शल विश्व मोहन तिवारी, इस्वा के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 धीरेन्द्र शर्मा, प्रख्यात कवि डा0 दिविक रमेश, बाल भवन, दिल्ली की पूर्व निदेशिका डा0 मधु पंत, वैज्ञानिक श्री एल0डी0 काला, साइंस रिपोर्टर की सहायक संपादिका श्रीमती विनीता सिंघल विज्ञान कथाकार श्री जीशान हैदर जैदी एवं श्री इरफान हयूमन आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
इस अवसर पर लेखक जाकिर अली "रजनीश" द्वारा प्रस्तुत शोधपत्र "विज्ञान कथाओं द्वारा विज्ञान संचार" को श्रेष्ठ शोधपत्र के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार वैज्ञानिक एवं अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक प्रो0 श्रीकृष्ण जोशी ने प्रदान किया। इन पंक्तियों के लेखक ने अपने उदबोधन में उपरोक्त विषयक शोधपत्र के वाचन के साथ-साथ "साइंस फिक्शन इन इंडिया" "रवि रतलामी का हिन्दी ब्लॉग", "उन्मुक्त", "ई-पंडित", "सारथी", "हिन्द युग्म" आदि द्वारा विज्ञान एवं टेक्नालॉजी के प्रचार-प्रसार के लिए किये जा रहे विशेष प्रयासों की भी चर्चा की। अन्य वक्ताओं ने भी ब्लॉग की बढती लोकप्रियता पर प्रसन्नता व्यक्त की और विज्ञान संचार के लिए उसके उपयोग पर बल दिया।
विज्ञान में रुचि पैदा करने के लिये विज्ञान कहानियों का खास महत्व है। कार्ल सागा ने माना कि उन्हें विज्ञान में रुचि, विज्ञान कहानियों के कारण आयी।
ReplyDeleteजाकिर अली रजनीश बहुत ही रुचि कर जानकारि दी आप ने, ओर आज आप को देखा भी नये रुप मे
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