राम सेतु का यथार्थ
राम सेतु के मामले ने अब एक जनांदोलन का रूप ले लिया है और यह तो होना ही था .जब भी आम रूचि के मामलों पर जनता जनार्दन को विश्वास मे नही लिया जायेगा जनता ऐसे ही उठ खडी होगी .जनता को हर ऎसी योजनाओं के बारे मे बखूबी जानने का हक है जिसमे उसकी टेंट से करोड़ों रुपये खर्च होने वाले हों .राम सेतु का प्रसंग कुछ ऐसा ही है.
लेकिन अपने इस चिट्ठे पर इस मामले को उठाने की मेरी मंशा महज इतनी ही है कि हम इस मामले के वैज्ञानिक पहलू को ठीक से समझ लें .यह मुद्दा विज्ञान संचार का एक नायाब अवसर है और इसे मैं खोना नही चाहता .
मैं अपनी स्थापनायें सक्षेप मे प्रस्तुत कर रहां हूँ.
१-राम सेतु एक कुदरती रचना है जो रामेश्वर के धनुष्कोती जगह से लगभग ४० किमी एक समुद्रगत पगडंडी के रूप मे श्रीलंका तक पहूचता है.यह लायिम स्टोन का बना है -चुने के पत्थर और बालू का जमाव .
२.सोलहवीं शती तक इसका कुछ भाग कहीं कहीं पानी के ऊपर भी था और आम आवाजाही भी होती थी ,एक फेरी सेवा भी चलती रही है लेकिन आतंकवादी गतिविधियों के चलते यह बंद हो गयी.
३,चूंकि इसके चलते समुद्री जहाज़ों की आवाजाही बाधित रही है और पशिमी तट से जहाज श्रीलंका होकर क़रीब ६०० किमी का लंबा चक्कर काट कर बंगाल की खाडी पहुँचते हैं इसलिए कुछ लोगों को यह सद्बुद्धि आयी की क्यों न राम सेतु के एक हिस्से को तोड़ कर काफी गहरा कर इसे आवाजाही के लिए खोल दिया जाय .सब कुछ चुपके चुपके चलता रहा और २००५ आते आते अरबों की लागत की यह योजना आख़िर शुरू हो गयी .
४.आख़िर यह विवाद क्यों ? विवाद के कई पहलू हैं लेकिन सब के सब आम जन को विस्वास मे न लेने की वजह से हैं .राम सेतु के विनाश से बेशकीमती मूंगे की चट्टानें , मछलियों के साथ ही एक विशाल जैव संपदा का विनाश होगा .पश्चिमी और पूर्वी तट की जैव संपदा आपस मे जहाज़ों के बैलासट जल के जरिये मिलेगी और ऐसे जैवाक्रमण के दूरगामी परिणाम होंगे .कुछ प्रजातिआं विलुप्त भी हो सकती है.
मैं ख़ुद भी विज्ञान का का एक अदना सा सेवक हूँ और इमानदारी से कह रहां हूँ सरकार ने भली भांति इन पहलुओं की छान बीन नही कराई बस खाना पुरी ही हुयी है .
५-एक पहलू राम की अस्मिता पर सवाल का है .राम एक ऐतिहासिक तथ्य है या नही .यह कामन सेन्स और थोड़े तार्किक सोच की मांग करता है.अभी ताजातरीन जीनोग्रैफिक प्रमाणों ने यह प्रमाणित किया है की हजारों वर्ष पहले उत्तर की तरफ से एक यायावारी मानव जत्था दक्षिण तक पहुंचा था और वहाँ पहले से ही आबाद मूल वासिओं के नर सदस्यों का सफाया कर अपना बर्चस्व कायम किया .दरअसल यही वह लोक स्मृति है जो मिथकों के कई रूपों मे हमारे सामने आती रही है.
६-क्या राम एक यायावर के रूप मे उस समुद्री पगडंडी का पुनरोद्धार नही कर सकते .मिथकों के यथार्थ हमे शायद यही बताते हैं .हनुमान ने व्यापक सर्वे किया ,नल ने अपनी टीम को लेकर उस समुद्री पगडंडी का पुनर्निमाण /पुनरोद्धार किया .इसके पुन्र्खोज का सेहरा उन पर बांधना चाहिए .राम ने इस सेतु का नाम करण नल सेतु ही किया था .
७.आज हम एक विजेता पुरुषोत्तम राम के वंशज हैं ,किसकी हिम्मत है कि उनकी धरोहर मे हाथ लगाए -उस समय तक तो नही जब तक उनके वंशजों का वजूद कायम है .राम सेतु अब एक राष्ट्रीय सांस्कृतिक धरोहर भी है . .
क्षुद्र राजनीति से ऊपर उठ कर हमारी धरोहर को बचाने की जरूरत है.
ReplyDeleteऐतिहासीक प्रमाण जुटाने में पसीना बहाना पड़ता है और हमारे सरकारी कर्मचारीयों/इतिहासकारों से ऐसी उम्मीद करना उनके साथ नाइंसाफी है.
न जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि इस मैटर को इस ब्लाग में पेस्ट नहीं करना चाहिए था। इससे ब्लाग की थीम प्रभावित होगी। यह एक सामयिक/सामाजिक मुददा है। मेर समझ से यदि आप इसके लिए एक नया ब्लाग बनाएं तो शायद ज्यादा अच्छा रहेगा।
ReplyDeletemubaarak ho aapne maan to liya ki RAAMSETU EK KUDRATEE RACHNAA HAI. yani wo manmade nahi hai.
ReplyDeletecourt ne yahee poochha tha.
ASI ne bhee uskaa yahee jawab diyaa tha.
phir ye hangaama-e-khuda kya hai!
अरविंद जी, विज्ञान को आम जीवन से जोड़ना बहुत जरूरी है। आपका ब्लॉग पहली बार देखा। मैं आपकी कोशिशों से काफी उत्साहित हूं। जाकिर भाई की बात अपनी जगह, लेकिन राम सेतु पर इस ब्लॉग पर आपने जो लिखा है, वह ब्लॉग की थीम को बिगाड़ता नहीं, बढ़ाता है।
ReplyDeleteकाफी सही है सटीक लिखा है आपने ...अच्छा लगा आपका विचार पढ़ कर । लेकिन जब बात धर्म और आस्था पे आती है ,तो आन्दोलन होना स्वाभाविक है । इससे इतर कुछ धरम गुरू इसका आड़ ले कर अपना उल्लू सीधा करते है । आख़िर ! कब इनको अक्ल आएगी ....खैर ,बहुत अच्छा लगा आपको पढना ,जल्दी ही आपके ब्लोग पर फिर आने का प्रयाश करूंगा । और हां ,हमारे ब्लोग पे भी आपका स्वागत है .
ReplyDeleteA nicely written article. its nformative as well as reveals some scientific facts.
ReplyDeleteRegards
Swati Bute
अभी ताजातरीन जीनोग्रैफिक प्रमाणों ने यह प्रमाणित किया है की हजारों वर्ष पहले उत्तर की तरफ से एक यायावारी मानव जत्था दक्षिण तक पहुंचा था और वहाँ पहले से ही आबाद मूल वासिओं के नर सदस्यों का सफाया कर अपना बर्चस्व कायम किया .दरअसल यही वह लोक स्मृति है जो मिथकों के कई रूपों मे हमारे सामने आती रही है.
ReplyDeleteYeh panktiyan kai jigyasayein jagati hain. Kya aap inka refernce ya shodh patra ki copy uplabdh kara sakte hain, taki is jwalant vishay mein vistrit jaankari prapt ho sake. Dhanyavad.