नियोगी बुक्स, नई दिल्ली द्वारा सद्य प्रकाशित और युवा लेखक सामी अहमद खान के पहले साइंस फिक्शन उपन्यास एलियंस इन डेल्ही को पढ़ने का अवसर मिला है। यहां उपन्यास की एक संक्षिप्त परिचयात्मक समीक्षा इस विधा के प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है।
वैसे तो साईंस फिक्शन या विज्ञान कथा स्वयं में एक फ्यूज़न है विज्ञान और कला की विधाओं की मगर उपन्यासकार ने यहां एक और फ्यूज़न की कलात्मकता दिखाई है और वह है पोलिटिकल थ्रिलर को साईंस फिक्शन के साथ मिलाकर पेश करने की। यह एक चुनौती भरा काम था किन्तु लेखक ने इस जटिल कार्य का निर्वहन कुशलता से किया है।
एलियंस इन डेल्ही एक साथ पोलिटिकल थ्रिलर और साइंस फिक्शन का आनंद लेने का आमंत्रण है। कथानक में वैश्विक परिदृश्य में राजनय, कूटनीति और आतंकवाद और इनसे जुड़े संगठनों आई एस आई, सी आई ए और भारतीय खुफिया एजेंसियों के तमाम दुरभिसंधियों के साथ ही एक परग्रही सभ्यता के आ धमकने और और अपना वर्चस्व बनाने के प्रयत्नों का सिलसिलेवार व्योरा है।
उपन्यास के आखिरी चरणों में पता चलता है कि यह परग्रही सभ्यता जो दरअसल पृथ्वी प्रसूता ही है यहां परमाणुवीय विभीषिका के आशंका से मानवता को बचाने के उद्येश्य से ही आई है और यह काम वह मोबाइल टावरों के विकिरण से एक उत्परिवर्तनकारी विकिरण को संयुक्त कर अंजाम देना चाहती है। और यहां के मानवों को अपनी तरह के सरीसृपरुपधारी (रेप्टीलाॅयड) जीवों में बदल देना चाहती है। और यह काम शुरु भी कर देती है। जगह-जगह लोग सहसा सरीसृप रुप ले रहे हैं। एक मोबाईल विकिरण से उपजा आतंक लोगों को अपने गिरफ्त में ले रहा है।
हलांकि भारतीय सेना इस परग्रही हरकत को नाकाम कर देती है। उनके अन्तरिक्ष यान को काफी क्षतिग्रस्त कर देती है। उनके रेडियोधर्मी स्रोत को नष्ट करने में कामयाब हो जाती है। मगर भारत के प्रधानमंत्री को जाते जाते यह आगाह कर जाते हैं कि उन्हें अपने मन्सूबे में कामयाब होने से कोई रोक नही पायेगा।
उपन्यास केवल इसी अर्थ में भारतीय साईंस फिक्शन कहा जा सकता है कि यह एक भारतीय द्वारा लिखा गया है जबकि उपन्यास की भाषा कथा शैली पश्चिमी साहित्य का ही बोध कराती है। विज्ञान की जानकारियों का विपुल उल्लेख है किन्तु यह समझ में नहीं आता कि कोई उत्परिवर्तक सीधे कैसे मानवरुपों में तब्दीली ला सकता है। मान्य विज्ञान यह बताता है कि उत्परिवर्तक किसी पीढ़ी के प्रजननकोशाओं (जर्मिनल सेल) के डीएनए में तब्दीली लाते हैं जो अगली पीढ़ी के शारीरिकी (फीनोटाईप) में प्रगट होता है जैसा कि नागासाकी हिरोशिमा में हुआ।
सीधे शरीर के कायिक कोशिकाओं (सोमैटिक सेल्स) पर विकिरण के प्रभाव से तात्कालिक विकृति उत्पन्न होना संभव नहीं। जबकि उपन्यास में विकिरण से तात्कालिक शारीरिक उत्परिवर्तन को दर्शाया गया है। उपन्यास में परिवेश को उकेरने और भिन्न भिन्न लोकेशन का जीवंत वर्णन है।
विज्ञान कथा प्रेमियों के लिए यह सौगात स्मरणीय रहेगी।
समीक्षा के माध्यम से नये लेखक की इस रचना से परिचित करवाने का धन्यवाद। उन्हें भी बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteशुक्रिया अभिषेक जी
Deleteसमीक्षित पुस्तक को अब पढ़ने की इच्छा है! आपको धन्यवाद और नवोदित लेखक को शुभकामनाएं!💐💐💐💐
ReplyDeleteसादर शुक्रिया अज्ञात जी ☺😊
DeleteHay there nice blog
ReplyDeletefor best inspirational Novel
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21st Century Indian Writers in English Literature