कविता की एक नई विधा जो विगत कई दशकों से पश्चिमी जगत में समादृत रही है 'विज्ञान कथा कविता' (साइंस फिक्शन पोएट्री ) कही जाती है. भारत में इस विधा की कोई नुमाईंदगी नहीं रही किन्तु अब यह अभाव हेमंत द्विवेदी प्रणीत 'अग्निगर्भ' विज्ञान कथा कविता के संकलन के प्रकाशन से दूर हो गया है। कविता संग्रह के आमुख पर भी यह मुख्य रूप से ज्ञापित है कि यह हिन्दी में विज्ञान कथा कविताओं का पहला संकलन है। समीक्षक की स्पष्ट राय है कि हिन्दी ही नहीं यह भारत का पहला विज्ञान कथा काव्य संकलन है। इस तरह भारत ने विज्ञान कथाओं के पश्चात विज्ञान कथा कविता के क्षेत्र में भी अपना प्रतिनिधित्व बना लिया है.
इस कथा संग्रह के तीन भाग हैं -पहले भाग में परम्परा और विज्ञान के द्वंद्व को रेखांकित कवितायेँ संचयित हुयी हैं तो दूसरे भाग में कविताओं को एक कथा का बैकग्राऊँड देकर रचा गया है। जिसमें विस्मय,रहस्य और रोमांच के साथ ही मिथकीय प्रभाव परिलक्षित होता है। तीसरा खंड सायफायकू (विज्ञान कथा हायकू ) को समर्पित है और ये कवितायेँ हायकू शिल्प में हैं। संकलन के अंत में विज्ञान कथा कविता पर एक शोधात्मक दृष्टि है. कवि ने विज्ञान कथा के संगठित प्रादुर्भाव को वर्ष 1978 में अमेरिका की सुजेट हैडेन एल्गिन द्वारा विज्ञान कथा कविता संघ की स्थापना से माना है। शोध निबंध विज्ञान कथा कविता के बोध को और स्पष्ट तथा व्याख्यायित करता है। कई नामचीन विज्ञान कथा कविता के हस्ताक्षरों के विचार और परिभाषाएं भी कवि ने सश्रम उद्धृत की हैं। जैसे ग्रेग बीयर का मानना है कि विज्ञान कथा कविता मात्र विज्ञान के यशोगान की कविता नहीं है बल्कि यह समकालीन दुनिया के परे की एक कल्पना प्रसूत प्रस्तुति है बिल्कुल विज्ञान कथाओं की ही तरह। इसका कवि के स्वयं के द्वंद्व और समकालीन परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया से कोई लेना देना नहीं है बल्कि यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संभावित सामाजिक प्रभावो की एक कल्पित काव्यात्मक अभिव्यक्ति है।
संकलन की कई कविताओं ने समीक्षक को प्रभावित किया जिसमें लज्जा ,सुदर्शन चक्र ,आकर्षण ,सारा आकाश , आदमकद ,अंधेरी सरहदें आदि हैं . कवि का आग्रह विकास के पथ पर अग्रसर मानव के आत्मिक ह्रास को लेकर है। सारा आकाश में वह कहता है ... "हम चाँद और मंगल पर रहेगें ... तब चांद पर होगी जाति प्रथा मुल्कों की बस्तियों का शोषण,प्रजातंत्र अराजकता। लम्बी कविता लज्जा में कवि अपने काव्य कल्पना लोक के प्रथम परग्रही का इस धरती पर आवाभगत इसलिए नहीं कर पाता कि एक धरतीवासी के रूप में उसके मन की कई दुश्चिंताएं उसे ऐसा करने से हठात रोक लेती हैं। कविता उसके इसे पश्चाताप को अंतिम पंक्तियों में ध्वनित करती है -इस अगस्त्यों ,सूफियों संतों ,लामाओं की भूमि पर कोई एक कोना न मिला मुझको जहां कुछ पल साये में किसी दूसरी जमीन से आये अपने मेहमान को मैं दो सूखी रोटियां खिला सकूँ इसलिए मैं आज तक लज्जित हूँ....
हिन्दी विज्ञान कथा काव्य की इस अभिनव प्रस्तुति का स्वागत किया जाना चाहिए।
पुस्तक विवरण:
अग्निगर्भ
आधारशिला प्रकाशन ,बड़ी मुखानी ,हल्द्वानी
नैनीताल -263139
पृष्ठ -141
प्रकाशन वर्ष : 2013
इसको कहाँ से खरीद सकते हैं?
ReplyDeleteजानकारी देने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
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