Sunday, February 21, 2010

द बीस्ट विथ नाईन बिलियन फीट -एक समीक्षा

 समीक्षा 
द बीस्ट विथ नाईन  बिलियन फीट
( साईंस फिक्शन उपन्यास )
उपन्यासकार  -अनिल मेनन
यंग जुबान प्रकाशन (२००९)
१२८ बी ,शाहपुर जाट 
नई दिल्ली 
मूल्य -२९५,पृष्ठ -२५९

अनिल मेनन की 'द बीस्ट विथ नईं बिलियन फीट ' एक हैरतंगेज नईं दुनिया 'की कहानी है जो २०४० में वजूद में आती है .इस दुनिया की जो दहशतनाक परिकल्पना उपन्यास में प्रस्तुत हुई है उसके मुताबिक़ वह दुनिया होगी  जीन परिवर्धित /संशोधित मानवों की जो तब तक निश्चित ही नौ अरब तक का आंकड़ा छू  रहे होंगे -यह उपन्यास एक विज्ञानं कथा प्रेमी को निश्चित ही आल्डुअस हक्सले की कालजयी कृति ब्रेव न्यू वर्ल्ड की याद दिलायेगी और उसी सोच के एक विस्तारित नए और आधुनिक /समकालीन संस्करण के रूप में अपना छाप पाठकों पर छोड़ेगी . जीवों को जीन में परिवर्तन से उनमें मनोवांछित तब्दीली  अब हकीकत में बदल  चुकी हैं  -जेनेटिकली माडीफायिड  आर्गेनिजम(जी एम ओ ) अब तरह तरह के रूपं रंग में हमारे जन जीवन का हिस्सा बनने लगे हैं -खाने के मेज तक उनकी पहुँच हो रही है और   शायद  शयन कक्ष भी उनसे जायदा दूर नहीं रह गया है .....मतलब वे अब मनुष्य की दैनंदिन जिन्दगी का हिस्सा बनते जा रहे हैं .

अगर यह सिलसिला निर्बाध चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब डाली सरीखे पशु -पक्षी ही नहीं मनचाहे गुणों अवगुणों वाले मनुष्यों के  जीन संवर्धित रूपों के निर्माण को भी हरी झंडी  मिल जायेगी -अनिल मेनन जो एक जाने माने विज्ञान कथाकार हैं इसी मुद्दे को अपने इस पहले उपन्यास की थीम बनाते हैं .उपन्यास की लोकेशन भारत  के पुणे शहर से लेकर उत्तरी ध्रुव से करीब ढाई हजार किलोमीटर की दूरी  पर स्वीडेन में बसाये जा रहे एक नए शहर नुर्थ (न्यू अर्थ ) तक फैली हुई है -वह क्षेत्र हिमाच्छादित है और उपन्यास का एक प्रमुख पात्र आडी (आदि) जो मनुष्य के जीनीकरण का आरम्भ है (अतः आदि! ) कथा के अंत तक भी उपन्यास के आकर्षण /विकर्षण का केंद्र बिंदु बना रहता है .वहीं वह एक भयंकर दुस्वप्न देखता है -जैसे कोई नौ अरब आँखों ,ह्रदय और पैरों वाला राक्षस (जीन संवर्धित दानवता!  ) बढा चला आ रहा है उसकी ओर और एक  महिला पात्र विस्पला उसे विनष्ट करने को आगे बढ रही है -यह  दृश्य -प्रतीति देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर मर्दन के भारतीय मिथक सा है जिसे उपन्यासकार ने जानबूझकर या अनजाने ही चित्रित कर  दिया है .शायद  इसलिए कि वह भी एक  हिन्दू मनसा  भारतीय है जिसके अवचेतन पर भारतीय  मिथकों का प्रभाव है ही ....याद है मेरी शेली के 'फ्रैकेंनस्टीन' में भी डॉ. फ्रैंन्केंस्टीन का प्रयाण स्थल एक ऐसा ही बर्फीला लैंडस्केप रहता है जहां उपन्यास का केन्द्रीय दानव पात्र वहां प्रगट होता है ?क्या आदि के स्वप्न के भयंकर और भयावने दानव का भी समान  बर्फीले लैंडस्केप में प्रगट होना रचनाकार के एक दूसरे अवचेतन के लिपि बद्ध होते जाने का संयोग मात्र ही  तो नहीं  है ?

उपन्यास पात्र बहुल है -पढ़ते वक्त कभी कभी थोड़ी खीझ भी होती है और आश्चर्य भी कि इतने पात्रों के चरित्र -चित्रण का निर्वाह उपन्यासकार कैसे कर पायेगा -मगर कहानी के अग्रसर होने पर सहज ही  पात्र कम होने लगते हैं .सिवान भाऊ मुख्य चरित्रों में से हैं जो जीन संवर्धन प्रयोगों को 'मुक्त सोर्स' बनाए रखने के हिमायती हैं और सक्रिय राजनीति में उतर आते हैं -राजनीतिक  विद्वेष के शिकार होते हैं मगर फिर अपनी मनमाफिक पार्टी के पुनः  सत्ता में आने पर प्रतिष्ठित हो जाते हैं -उनकी धुर विरोधी महिला  पात्र विस्पला जो "शुद्ध जीन " अभियान की जनक है वह जीन संवर्धित सामानों को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने में व्यावसायिक हितों को भी देखती है -वह एक दूसरे प्रोजेक्ट पर भी काम करती है जिसमें मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रंणाली को उद्वेलित कर उसकी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया पर विराम लगाने की जुगत है .और इस स्वप्न को चरितार्थ करने के लिए वह सिवान भाऊ को जिम्मा देती हैं मगर सिवान भाऊ इस परियोजना से हाँथ खींच लेते हैं क्योकि उन्हें ऐसा आभास हो जाता  है कि इससे मनुष्य की बौद्धिकता ,उसके संज्ञात्मक शक्ति,भावनाओं पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है .आदि ,सिवान भाऊ का एक ऐसा ही हतभाग्य पुत्र है जिस पर उनके द्वारा गर्भावस्था के दौरान प्रयोग परीक्षण किया गया था -सिवान भाऊ इस तरह एक तरह से ग्लानी बोध से ग्रस्त हैं  और इस तथ्य का खुलासा होने पर आदि भी अपने पिता के प्रति विद्रोह कर उनके धुर विरोधी विस्पला का दामन थाम लेता है .

जी हाँ ,पात्रों की तो भरमार है -आदि, तारा भाई -बहन ,रिया और फ्रैंसिस विस्पला के कोखज  नहीं केवल अंडज और जेनेटिकली माडीफायिड पुत्र -पुत्री ,सिवान भाऊ का चहेता पुलिस अधिकारी प्रणय ,सिवान की पत्नी उषा ,संस्कृत अध्यापक अय्यर जी,सिवान की बहन सीता तथा और भी ढेर सारे गौण और मुखर पात्र - ये सब उपन्यास में आते रहते हैं और कथानक आगे सरकता रहता है कभी मंथर तो ज्यादातर तीव्र गति से .....लेकिन जिस कुशलता और सिद्धहस्तस्ता से उपन्यासकार ने इन ढेर सारे पात्रों को कथानक में बुना है वह काबिले तारीफ़ है .

साईंस फिक्शन की पृष्ठभूमि पाठकों के लिए काफी अनचीन्ही होती है क्योकि वह मौजूदा दुनियां से ताल्लुक नही रखती है -इस उपन्यास में भी उपन्यास के विभिन्न लैंडस्केप, लोकेशन  और समूची पृष्ठभूमि को तैयार करने में उपन्यासकार का घोर परिश्रम दिखता है -अजनबी दुनिया के अजनबी लोग ,अजनबी वस्तुएं ,बोलते बतियाते स्मार्ट घर ,पुष्पक विमान सरीखा  अनुभूतियों से युक्त यान लिंक्स,बुद्धिमान खिलौने -जैसे एक जी एम तोता जो उपन्यास की मुख्यधारा का पात्र बन जाता है ,विष वृक्ष जिसके दंश हाथी तक मार डालने में सक्षम हैं -लाहू द्वीप तक जाने के लिए होलोग्राफिक इमेज प्रक्षेपण तकनीक ,वहां की जी एम शार्कें -यह सब एक आश्चर्यलोक की सैर से कम नहीं है -आज भी कहाँ हैं वजूद में ऐसी दुनिया? 

उपन्यास के बहुल पात्र और उसकी वैश्विक भाषा (यह कहने भर को अंगरेजी का उपन्यास है ) -संस्कृत ,जर्मन ,स्वीडिश ,हिन्दी .और हाँ कथा माध्यम के रूप में मौजूद अंगरेजी इस उपन्यास में समेकित होकर 'अनेकता में एकता' का ही मानों भारतीय उद्घोष करते हों मगर वस्तुतः  एक वैश्विक साहित्य का प्रतिमान /मानदंड भी प्रस्तुत करते हैं .कथानक बच्चों के मिलने जुलने और उनके कोमल अनुभव संसार से आरम्भ होकर विस्तार पाता है -जो शायद लेखक के बचपन के ही अवचेतन के तमाम पृष्ठों का ही  खुलते जाने जैसा लगता है -   संवाद शैली ही कथा प्रवाह का मुख्य शिल्प है .
सचमुच एक बेजोड़ कृति  

Thursday, February 4, 2010

Just Arrived :The Beast with Nine Billion Feet

Just Received


The Beast with Nine Billion Feet

Anil Menon
Zubaan Books
260 pp pbk

ISBN 9788189884390
Publisher:Zubaan Books
The book is just received,not read  but the very title and a bird eye  view  evoke some eerie feelings as if it is in tradition of the fables depicting  mythological characters  like 'Sahstrbaahu' -the one having thousands hands.It has to be seen how the learned author has blended the myth and sf in his debut sf novel.

Full review later.
P.S.
The book is also available at TheStorez.com