Monday, September 1, 2008

विज्ञान कथा : विस्फोट

लीजिए आपकी सेवा में प्रस्तुत है आतंकवाद पर केन्द्रित एक विज्ञान कथा। आशा है आपको यह कहानी अवश्य पसंद आएगी।

आह, ...पानी। सीमा पर शत्रु सेना की गतिविधियों पर नज़र रखे कैप्टन रंजीत के कानों में ये शब्द पड़ते ही वे चौंक उठे। दुरबीन को आंखों के सामने से हटाते हुए वे आवाज़ की दिशा का अंदाज़ा लगाने लगे।

पा..नी। चंद क्षणों के अंतराल के पश्चात वही आवाज़ पुन: सुनाई पड़ी।

उस कम्पित स्वर की व्यथा पहचानने में कैप्टन को ज़रा भी देर न लगी। उन्होंने एक सिपाही को आदेश देते हुए कहा, जाकर देखो, वहां नीचे कौन है?”

हुक्म की तामील के विशेषज्ञ सिपाही ने तुरन्त आज्ञा का पालन किया। वह कश्मीर की पाक सीमा से लगी उस छोटी सी पहाड़ी से उतरकर इधरउधर देखते हुए सामने की ओर बढ़ चला। बादलों से घिरे होने के कारण उस समय दोपहर भी रात जैसी प्रतीत हो रही थी। पर उसकी सर्चलाईट से तेज़ आंखें उस समय भी झाडियों के आरपार देखने में पूर्णत: सक्षम थीं।

तीसरी बार जब उसने पानी की आवाज़ सुनकर श्रोत की ओर नज़र दौड़ाई, तो आश्चर्य से उसकी आंखें खुली की खुली रह गयीं। सामने लगभग दस फिट की दूरी पर एक कटा हुआ सिर पड़ा था। पानी की आवाज़ उसी के मुंह से आ रही थी। आश्चर्य और रहस्य की उस प्रतिमूर्ति को देखकर सिपाही का शरीर जड़ हो गया। उसकी समझ में नहीं आया कि वह क्या करे, क्या न करे।

क्या हुआ तेजसिंह?” आवाज सुनकर सिपाही ने जब पीछे मुड़कर देखा, तो दो सिपाहियों के साथ कैप्टन को अपने पीछे मौजूद पाया।

भय के कारण सिपाही के मुंह से कोई आवाज़ न निकली। उसने हाथ से इशारे से कैप्टन का ध्यान उस ओर आकृष्ट कराया। हौलेहौले कदम बढ़ाते हुए कैप्टन उस सिर के पास पहुंचे। उसे देखते ही वे चहक उठे, अरे, ये तो शाहिद है, मेरे बचपन का दोस्त। पर ये यहां... इस हालत में...?”

कैप्टन का दिमाग तेजी से घूमने लगा। शाहिद पिछले कई दिनों से गायब था। फिर अचानक यहां उसका सिर...? और वह भी बोलता हुआ...? कहीं किसी ने उसकी हत्या तो नहीं...? पर कौन कर सकता है ऐसा? यहां तो चारों ओर सेना का सख्त पहरा है। फिर ये सिर यहां कैसे आया? ...और ये सिर बोल कैसे रहा है? बिना धड़ के सिर भला कैसे बोल सकता है...? क्या उसका जिस्म भी यहीं कहीं आसपास...?

रंजीत की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। रहस्य के चक्करदार घेरों में उनका दिमाग उलझ कर रह गया। जैसे चारों ओर से सवाल घेरते जा रहे हों और शत्रु के सामने कभी हार न मारने वाले कैप्टन उनके सामने अपने हथियार डालते जा रहे हों।

अपने इस महारथी को बुद्धि के मैदान में पिछड़ते देख, प्यासे की प्यास बुझाने के लिए जल देवता नन्हींनन्हीं बूदों के रूप में धरती पर अवतरित होने लगे।

शाहिद के मुंह में पनी की बूंदे पड़ते ही उसमें पुन: जान आ गयी। एक मुद्दत से प्यासी उसकी ज़बान पानी की बूंदों को जल्दीजल्दी गले के नीचे उतारने लगी। यह सब देखकर कैप्टन सहित तीनों सिपाही हैरान व परेशान थे। उनकी हैरानी के साथ ही साथ प्रतिपल बढ़ती जा रही थी, वर्षा की रफ्तार। और धीरेधीरे वह इतनी तेज़ हो गयी कि पानी में खड़े रहना मुश्किल हो गया। पर फिर भी सभी लोग अपनी जगह स्थिर खड़े थे। जैसे उनके ऊपर कोई जादू कर दिया गया हो।

पर यह क्या? तभी वहां पर एक हाथ और प्रकट हो गया। वातावरण में रहस्य की मात्रा बढ़ गयी। उपस्थित लोगों के चेहरों पर भय की परछाई स्पष्ट नज़र आने लगी।

फिर एक पैर, एक हाथ और प्रकट हुए। बिलकुल किसी जादू की तरह। जैसेजैसे जादू टूटता जा रहा था, अंगों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। अगले ही क्षण जिस्म का शेष भाग भी प्रकट हो गया। यानी की जादू पूरी तरह से टूट चुका था। और इसका सारा श्रेय जाता था मूसलाधार बरसात को। शाहिद को सहीसलामत देखकर चारों लोगों की जान में जान आयी। कैप्टन रंजीत को यह समझते देर न लगी कि यह शाहिद के किसी नए आविष्कार का ही कमाल है।

इसकी हालत बहुत खराब है। जल्दी से इसे लेकर बैरक में चलो। कैप्टन ने सैनिकों को आदेश दिया। तीनों सैनिकों ने झटपट शाहिद को उठाया और कैप्टन के साथ वापस लौट पड़े।

बैरेक के पास ही टेंट से घिरा हुआ एक सैनिक अस्पताल था, जो समयकुसमय सैनिकों के काम आता था। डॉक्टर ने शाहिद के नीले पड़ते शरीर को देखकर यह स्पष्ट कर दिया कि इनके शरीर में किसी तेज़ जहर का प्रवेश हो चुका है। अब इन्हें बचाना नामुमकिन है। हां, इस बात के लिए प्रयत्न किया जा सकता है कि इन्हें अधिक के अधिक समय तक जीवित रखा जा सके।

अपने बचपन के दोस्त शाहिद के बारे में सोचतेसोचते कैप्टन रंजीत टेंट से बाहर निकल कर एक कुर्सी पर बैठ गये। शाहिद की जिन्दगी की तमाम घटनाएं किसी फिल्म की रील की तरह उनकी आंखों के सामने घूमने लगीं।

कैप्टन रंजीत और शाहिद कश्मीर के डोडा जिले के रहने वाले हैं। एक ही मुहल्ले में दोनों के आसपास घर थे। दोनों लोगों में बचपन से ही दोस्ती थी। वे लोग साथ खेलते और साथ ही पढ़ते थे। यही कारण था कि अनजाने में लोग उन्हें भाईभाई समझने की गलती कर बैठते थे।

शाहिद जब चार वर्ष का था, तभी एक बम विस्फोट में उसके पिता की मृत्यु हो गयी थी। उसकी मां ने उसे और उसकी छोटी बहन को किसी तरह लिखाया–पढ़ाया। वह शुरू से ही पढ़ने में बहुत तेज था। विज्ञान हमेशा उसका प्रिय विषय रहा, जिसका प्रमाण उसने दसवीं की परीक्षा में पिच्चानबे प्रतिशत अंक ला कर दिया।

मां, बहन के प्यार और पढ़ाई की लगन के कारण वह अपने पिता की मौत को जल्दी ही भूल गया। पर जैसे मुकद्दर से यह सब देखा न गया। एक दिन आंतकवादियों द्वारा छोड़ा गया एक रॉकेट उसके घर पर आ गिरा। उस विस्फोट ने उसके जीवन का बचाखुचा सुकून भी छीन लिया।

शाहिद उस समय किसी काम से बाज़ार गया था। लेकिन जब वह लौट कर आया, तो सन्न रह गया। मांबहन दोनों ही लोग हमेशाहमेशा के लिए सो चुके थे। वह अपने घर में एकदम अकेला रह गया। ऐसे मौके पर उसके चाचा ने उसे सहारा दिया। चाचा के पास रहकर ही उसने एम0एस0सी0 की पढ़ाई पूरी की।

पर मुकद्दर का खेल यहीं पर खत्म नहीं हुआ। शाहिद के चाचा की गिनती शहर के धन्ना सेठों में होती थी। आतंकवादियों ने उनसे 10 लाख रूपयों की मांग की। उन्होंने रूपया देने से साफ इनकार कर दिया। आतंकवादियों से उनकी बर्दाश्त नहीं हुई। एक दिन शाम के समय घात लगाकर उन्होंने उनका काम तमाम कर दिया। इस प्रकार शाहिद का अन्तिम सहारा भी हमेशा के लिए छिन गया।

अपने चाचा की मृत्यु को देखकर शाहिद बुरी तरह से हिल गया। उसने आतंकवादियों के उस गढ़ को नेस्तानाबूद करने का फैसला कर लिया, जहां पर उन्हें ट्रेन्ड किया जाता है।

शाहिद की इस प्रतिज्ञा को पूरी करने में उसके चाचा की दौलत ने महत्वपूर्ण रोल अदा किया। उसने अपने चाचा की सम्पत्ति को बेच दिया और दिल्ली चला गया। वहां पर उसने एक मकान खरीदा और उसमें रिसर्च करने के लिए प्रयोगशाला की स्थापना की। उसके बाद वह अपने कार्य में जीजान से जुट गया। उसका लक्ष्य था एक अनोखा और महान आविष्कार।

सर, उन्हें होश आ गया है। एक सिपाही ने कैप्टन को सूचना दी। जैसे किसी ने उन्हें नींद से जगा दिया हो। वे बड़बड़ाए, किसे होश आ गया?” लेकिन अगले ही क्षण उन्हें सब कुछ याद आ गया। उन्होंने तुरन्त अपनी गल्ती सुधारी, हां, चलो मैं चलता हूं। और फिर वे अस्थायी अस्पताल की परिधि में दाखिल हो गये।

अस्पताल के बेड पर शाहिद शान्त भाव से लेटा हुआ था। उसके गौर वर्णीय जिस्म पर ज़हर की नीलिमा स्पष्ट रूप से देखी जा सकती थी।

यूं तो शाहिद ने अपनी जिन्दगी में कई विस्फोट देखे और सहे थे, पर अब उसे उस विस्फोट का इन्तज़ार था, जिसे देखकर उसकी जिन्दगी का विस्फोट सार्थक होना था। पर जिन्दगी का विस्फोट कहीं उस विस्फोट से पहले न हो जाए, इसके लिए वह प्रतिपल अपने आप से जूझ रहा था।

सर, इनके शरीर में ज़हर फैल चुका है। मेरी समझ में तो यह ही नहीं आ रहा कि ये अभी तक जिन्दा कैसे हैं ?” डॉक्टर ने धीरे से अपनी बात कही, पर, ये ज्यादा देर तक जिन्दा नहीं रह सकते। इसलिए आपको इनसे जो कुछ भी... कहते हुए उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

ठीक है, आप चिन्ता न करें। मैं देखता हूं। कैप्टन मुस्कराए।

ओह, रंजीत तुम ?” कैप्टन रंजीत को देखकर शाहिद के होंठ धीरे से हिले, ये बताओ टाइम क्या हुआ है?”

6.20... पर क्यों, क्या हुआ ?”

ओह, अभी दस मिनट और सब्र करना है?” शाहिद ने निराशा में भरकर एक लम्बी सांस ली।

10 मिनट? इसका क्या मतलब है? तुम यहां कैसे पहुंचे? और तुम्हारा ये हाल कैसे हुआ?” कैप्टन ने एक ही सांस में कई सवाल पूछ डाले।

अपनी उखड़ी सांसों को संभालने का प्रयास करते हुए शाहिद बोला, रंजीत, मैंने अपना बदला ले लिया है। मेरा मिशन पूरा हुआ।

बदला? मिशन? तुम क्या कह रहे हो?” कैप्टन रंजीत कुछ समझ नहीं पाए।

मुझे और मेरे जैसे तमाम परिवारों को तबाह करने वाले आतंकवादियों का गढ़ कुछ समय बाद तबाह होने वाला है। चोरी से बनाए गये वे सभी अड्डे बमों के विस्फोट से इस कदर बरबाद हो जाएंगे कि किसी और को तबाह करने के लायक नहीं रहेंगे।

कहतेकहते शाहिद का मुंह क्रोध से लाल हो गया। कैप्टन रंजीत अपलक शाहिद की बातें सुन रहे थे। शाहिद ने कुछ देर रूक कर अपनी बात पुन: आगे बढ़ाई, तुम्हें मालूम होगा रंजीत, मैं एक आविष्कार करना चाहता था...

हां, मैंने सुना तो था। लेकिन वह आविष्कार क्या था ?”

थोड़ा सब्र करो रंजीत। मरने से पहले मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगा...

तुम ठीक हो जाओगे शाहिद... रंजीत ने उसे दिलासा दिया।

शाहिद धीरे से हंसा, मैं जानता हूं कि मेरे शरीर में ज़हर अंदर तक समा चुका है और इसका कोई इलाज नहीं है। यह मेरे आविष्कार की ही देन है।

कैसा आविष्कार...?”

देश के दुश्मनों से बदला लेने के लिए मैं एक ऐसा पदार्थ बनाना चाहता था, जो प्रकाश को पूरी तरह से सोख ले। ऐसे पदार्थ को जिस सतह पर लगा दिया जाए, वह पूरी तरह से अदृश्य हो जाएगी। अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए मैंने दिन–रात एक कर दिए। इस काम में पूरे दस साल लग गये...।

शाहिद लगातार बोलता जा रहा था। न जाने कहां से उसमें इतनी शक्ति आ गयी थी। शायद उसकी आत्मशक्ति ही थी, जो उसे अभी तक जिन्दा रखे हुए थी।

दस साल की मेहनत के बाद मुझे सफलता मिली दो समस्थानिकों और दो सम्भारिकों को बहुत ऊंचे ताप पर संलयित करके मैं वह पदार्थ बनाने में सफल हो गया। लेकिन परीक्षण के दौरान मुझे यह पता चला कि वह ज़हरीला हो गया है। शरीर की त्वचा के संपर्क में आते ही वह उसकी कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है। हालांकि वह पानी के द्वारा आसानी से छूट जाता था, लेकिन पानी के साथ मिलकर वह एक विष में बदल जाता है। वही विष इस समय मेरे रोमरोम में समाया हुआ है।

अपनी टूट रही सांसों की डोर को थामने के लिए शाहिद एक पल रूका। फिर उसने अपनी बात आगे बढ़ाई, यह जानने के बाद भी कि उस पदार्थ को अपने शरीर पर लगाना मौत को दावत देने के समान है, मैंने देश के दुश्मनों से बदला लेने के लिए उसे लगाना मंजूर कर लिया। मुझे गर्व है कि मैं अपना मिशन पूरा करने में सफल रहा। अब..., कुछ ही समय बाद वे सब तबाह हो जाएंगे। ...लेकिन अफसोस, मैं उन्हें बरबाद होते हुए देख नहीं सकूंगा...।

एकाएक रंजीत को कुछ ख्याल आया। वे शाहिद की बात काटकर बीच में ही बोल पड़े, ...लेकिन तुम्हें वे बम कहां से मिले और तुम आतंकवादियों के अड्डे तक कैसे पहुंचे?”

इससे पहले कि शाहिद उनकी बात का कोई जवाब देता, कहीं दूर एक जोरदार विस्फोट हुआ। विस्फोट से निकली ऊर्जा से सारा आसमान रोशनी में नहा गया। रोशनी की उस चमक को देखकर शाहिद के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी। उसका चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा। विस्फोट की स्थिति का अंदाज़ा लगाने के लिए कैप्टन रंजीत टेंट से बाहर निकले।

पहले विस्फोट की कौंध अभी शांत भी न होने पाई थी कि एक अन्य विस्फोट से आसमान गूंज उठा। वह विस्फोट भी पहले वाले की तरह ही जबरदस्त और भयानक था। फिर तीसरा, चौथा और पांचवां। उनकी आवाज़ सुनकर ज़मीन ही नहीं, आसमान भी थर्रा उठा।

लेकिन कुछ क्षणों के बाद सब कुछ शांत हो गया और फिर से चारों ओर सन्नाटा छा गया। अंधेरे की गहरी चादर में लिपटा मौत सा सन्नाटा।

रंजीत के चेहरे पर एक अनचाही मुस्‍कान रेंग गयी पर यह समय उस खुशी को व्यक्त करने का नहीं था। वे जल्दी से शाहिद के पास जा पहुंचे। उन्होंने अपना प्रश्न पुन: दोहराया, शाहिद, तुम्हें वे बम कहां से मिले थे?”

पर शाहिद वहां था कहां? जीवन के अन्तिम विस्फोट ने हमेशाहमेशा के लिए उसके दु:खों का अंत कर दिया था।

-ज़ाकिर अली रजनीश

6 comments:

  1. Interesting story. Congrats.

    ReplyDelete
  2. इस कहानी को साइंस फिक्शन इन इंडिया पर लाने के लिए आभार !

    ReplyDelete
  3. रोचक। पर कई प्रश्न बनाती है यह विज्ञान कथा।
    मैं भी इसी प्रकार की फंतासी सोचा करता था भारत पाक तनातनी के समय में।

    ReplyDelete
  4. Achi lagi kahani, magar kuch sawal Shahid ke saath hi chjale gaye.

    ReplyDelete
  5. kahani is good but it is not based on science,if light is absorbed by the body due to your material then there will be formation of shadow of body.

    ReplyDelete

If you strongly feel to say something on Indian SF please do so ! Your comment would be highly valued and appreciated !