Saturday, December 19, 2009

अवतार :मिथक और भविष्य की प्रौद्योगिकी का संगम!

अभी अभी अवतार फ़िल्म देख कर लौटा हूँ -बच्चों ने आज मेरे जन्म दिन पर यह मूवी दर्शन मुझे बतौर उपहार दिया! हालीवुड की इस फ़िल्म को लेकर कई दिनों से काफी हल्ला गुल्ला  मचा हुआ था और बनारस में तो कल कई हालों  में इसके शो का  हाउस फुल था -टिकट के लिए मारामारी मची थी ! यह विज्ञान कथा फिल्मों के प्रति बढ़ती रुझान का संकेत है ,यद्यपि इसके पीछे एक सुगठित प्रचार/व्यवसाय   तंत्र काम कर रहा है ! अफ़सोस है यह फ़िल्म भविष्य  ( 2154 ई) के एक एलियन सभ्यता से मुठभेड़ की कहानी है -दोस्ताना मिलाप नहीं है जिसके आईजक आजिमोव  एक बड़े पक्षधर थे! यह खनिज संपदा से उत्तरोत्तर श्रीहीन होती  भविष्य की धरती की कहानी है, जब एक दुर्लभ खनिज अनॉब्टेनियम की खोज के लिए अमेरिका से एक सैन्य अभियान के तहत अल्फ़ा सेंटोरी तारा मंडल के ग्रह पैन्डोरा पर एक सैन्य कुमुक भेजी जाती है ! वहां की यात्रा में ६ महीने लगते हैं!अन्तरिक्ष सैन्य यात्री यह सफ़र विशेषीकृत बंद प्रशीतित कक्षों में समाधिस्थ अवस्थाओं में पूरा करते हैं !


पैन्डोरा के मूलवासी उस स्थान को नहीं छोड़ना चाहते जहाँ से उत्खनन के जरिये वह दुर्लभ खनिज निकाला जाना है ! केवल सैन्य कार्यवाही ही एक मात्र विकल्प लगती है और परियोजना के पीछे लगे धन्ना सेठ इसकी इजाजत दे देते हैं ! मगर एक जैवविद महिला वैज्ञानिक मूल वासियों को समझा बुझा कर उस जगह को छोड़ने के अपने एक प्लान को भी आजामाना चाहती है जो सैन्य अभियान के मुखिया को महज एक बचकाना और हास्यास्पद प्रयास लगता है ! जैव वैज्ञानिकों और सेना के आकाओं में यह संवाद हीनता मानो विज्ञान कथाओं की एक पुरानी और  जानी पहचानी परिपाटी सी बन चुकी है . तो योजना यह बनती है कि किसी बहाने से कुछ ऐसे घुसपैठियों को  स्थानीय मूल निवासियों के बीच भेज दिया जाय जो उन सरीखे ही हों और उनमें घुलमिलकर भेदिये का काम कर सकें और  उस खनिज -समृद्ध जगह से उन्हें  बिना प्रतिरोध विस्थापित होने को राजी कर सकें !मगर ऐसा करने में बहुत खतरे हैं ,क्योंकि वे बहुत आक्रामक हैं ! तो तय यह पाया जाता है कि उनकी ही तरह हूबहू दिखने और आचरण वाला व्यक्ति उनके बीच भेजा जाय ! इसलिए उनका डी एन ये और पृथ्वी वासी नायक के   डी एन ये के मिश्रण से नायक का ही एक नया "अवतार" बनाया गया और उसमें नायक के मस्तिष्क की कार्यात्मक प्रतिकृति इम्प्लांट कर दी जाती  है  ! अब नायक को एक जगह प्रायोगिक बक्से में रखते हुये उसके मष्तिष्क के सहारे उसके अवतार को संचालित करने के काम को अंजाम  दिया जाता है !यह  अवतार उन मूल वासियों के बीच घुसपैठ बनाने में सफल तो होता है  -पर एक मूल निवासिनी के प्यार के पचड़े में पड़ कर अभियान का  विद्रोही भी हो जाता है  और उन मूल निवासियों की रक्षा को समर्पित हो जाता है  ! जैवविद की इस योजना के असफल होने पर सैन्य कार्यवाही अपरिहार्य हो जाती है  -मगर धरती वासियों को मुंह की खानी  पड़ती  है  और वापस धरती पर भागना पड़ता है  !नायक का मूल रूप भी अंतिम साँसे लेता है मगर अपने अवतार में अपनी चेतना सदा के लिए मूल वासियों को समर्पित करके !

फ़िल्म की दृश्यावलियाँ -इमेजरी जबरदस्त है -आधुनिक कम्पयूटर एनीमेशन से तरह तरह के चित्र विचित्र जीव जंतुओं की निर्मिति तो बस देखते ही बनती है -मानो अनेक मिथकीय चरित्र जीवंत हो उठे हों -रामायण काव्य काल के  भालू बन्दर ,विलुप्त डायिनोसोरों की अनेक कल्पनात्मक प्रतिकृतियाँ  ,एक अपरिचित से वातावरण  के हैरत अंगेज  पेड़ पौधे और वनस्पतियाँ चमत्कृत करती हैं -कई मिथकीय चरित्रों के कल्पित अल्ट्रा माडर्न /भविष्यत  रूप -गरुण सदृश भीमकाय उड़ाकू जीव हमें माहाभारत और रामायण काल के परिवेश में मानों ले जाते हैं ! इन दृश्यों को देखकर तो मानो अमेरिकी विज्ञान कथा लेखिका उर्सुला ली गुइन  की यह उक्ति कि विज्ञान फंतासी समकालीन पुराकथाएँ (मिथक ) ही हैं चरितार्थ लगती है!

अवतार फिल्म की  एक ख़ास बात है इसका नामकरण -और वह भी  भारतीय मिथकों से ही लिया गया है ! किसी विराट चेतना के एक अंश के रूप में धरती पर अवतरण ही अवतार का प्रगट होना है -हिन्दू मिथकों में दस प्रमुख और गौण अवतारों को लेकर कुल चौबीस अवतार अवधारित है -महज एक अवतार अभी भी भविष्य के गर्भ में है -कल्कि!  चेतना का पूंजीभूत पृथक अस्तित्व ही अवतार है -फ़िल्म का नामकरण अवतार चेतना के ऐसे ही प्रोजेक्शन का  अवधारण करता है जहां मूल व्यक्तित्व तो कहीं और हैं मगर उसका अंतरण कही और भी पुंजीभूत हो सकता है,मगर वह संचालित अपने मूल रूप से ही होता है.जैसे हिन्दू त्रिदेवों के एक देव विष्णु हैं जो अपने मूल रूप में तो क्षीर सागर में शयन  करते हैं मगर वहीं से अप्रगट ही  धरती के अपने अवतार की लीलाएं संचालित करते हैं   -फ़िल्म में नायक   का एक ऐसा ही अवतार भविष्य की वर्चुअल प्रौद्योगिकी के चलते कल्पित हुआ है ! और विज्ञान कथाओं की उस परम्परा का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें साईबर पंक कहा  जाता है -कम्प्यूटर जनित आभासी दुनिया  और मानव चेतना का युग्मित रूप ! फ़िल्म के लड़ने भिड़ने के दृश्यों में  भारी भरकम साईबोर्गों (मनुष्य -मशीन का मेल ) का भी खूब दृश्यांकन हुआ है !


ताज्जुब है अभी भी हालीवुड में साम्राज्यवादी /औपनिवेशिक श्रेष्ठता बोध को प्रदर्शित करने वाली फिल्मों का बोलबाला है -एक शांत  प्रिय देश पर एक साम्राज्यवादी दादा किस्म के देश का अधिपत्य जो हमें  बर्बर ब्रितानी आक्रमणों की याद दिलाता है अभी भी हालीवुड का एक स्थाई कथानक भाव  बना हुआ है -और वही प्रवृत्ति धरती और अपने सौर मंडल से दिक्काल की बड़ी  दूरियों  तक भी अक्षुण बनी हुई है  -क्या मनुष्य कभी नहीं सुधरेगा ? पैन्डोरा पर धरती वासियों का आक्रमण भी एक ऐसे  ही कथानक का विस्तार है और इसलिए बासी सा लगता है ! क्या पैन्डोरा वासियों से अन्य कोई मैत्री /कूटनीतिक संवाद कायम करने की सोच पर फ़िल्म नहीं  बन सकती थी ? क्या युद्ध ही अंतिम विकल्प है मानवता के सातत्य के लिए? हम युद्ध के बदले  शांति को क्या हमेशा के लिये दफ़न कर चुके -मगर क्या कीजिये बिना भयंकर मुठभेड़ /युद्ध के दृश्यों को फिल्माए फ़िल्म पैसे कैसे बटोरेगी ? आखिर इनका अंतिम मकसद तो व्यवसाय का ही हैं न ?

मैं फ़िल्म को पांच में से ढायी स्टार देता  हूँ ! और वह भी जबरदस्त दृश्यों के फिल्मांकन के लिए! भारतीय मनीषा के लिए फ़िल्म में कुछ ख़ास नहीं है !
समीक्षा के लिए यहाँ और यहाँ भी देख सकते हैं !

लेखक , निर्देशक : जेम्स कैमरॉन
कलाकार : सैम वर्दिगगटन, सिगोनी वीवर
समयावधि  : 162 मिनट 
विधा :  विज्ञान फंतासी
ट्वनटीयेथ सेंचुरी फाक्स प्रस्तुति