The writer Grant Morrison ("All Star Superman," "Final Crisis") along with film director Shekhar Kapur ("Elizabeth" and a comic writer for Virgin) and Sharad Devarajan (CEO of Virgin Comics) is on scripting an animated adaptation of the Mahabharata as science-fiction epic . Morrison said "I'm trying to convert Indian storytelling to a western style for people raised on movies, comics, and video games."
I have always maintained that the mythology and modern sf both have many things in common.But it depends a lot how the subject is treated /interpreted by the concerned stakeholders.
Mahabarata is a Sanskrit epic of ancient India possessing more than 74,000 verses, long prose passages, and about 1.8 million words making it one of the longest epic poems in the world.
Mahabarata being essentially a war story contains many images and ideas which keep it in the category of a great fantasy literature.Its a welcome idea to put the great Indian epic in an sf way but how the project is handled by the Morrison ,Shekhar Kapoor and Sharad Devrajan is any body's guess.Yet one more distortion in the name of eye-sf or some intelligible and concrete work remains a matter of conjecture.
More details are here .
Science fiction in India has lately emerged as a respectable literary genre. Please join me to have a panoramic view of Indian science fiction.
Tuesday, April 29, 2008
Mahabharata as science-fiction epic !
विज्ञान कथा ऑर मिथकों पर कुछ स्फुट विचार
अपने अंग्रेजी चिट्ठों में मैंने विज्ञान कथा के बारे मे अभी तक जो चर्चा की है उसके मुताबिक यह वह साहित्यिक विधा है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी मे दिन दूनी, रात चौगुनी गति से हो रहे बदलावों के चलते हमारे समाज पर पड़ने वाले भावी प्रभावों का एक काल्पनिक चित्रण प्रस्तुत करती है .
जिन्हे मिथकों मे थोड़ी रुचि है उन्होने भविष्य पुराण जरूर पढा होगा .इसमे भी भविष्य के बारे मे काफी पूर्वानुमानों की झलक है .यह बताता है कि आगे चलकर एक कल्कि अवतार होगा जो बहुत आक्रामक होगा ,यह अवतार घोडे पर सवार होकर आततायियों का नाश /संहार कर डालेगा .रामचरित मानस मे उत्तर काण्ड में गोस्वामी तुलसी दास ने कलयुग का लोमहर्षक वर्णन किया है .मुझे जानकारी मिली है कि एक भविष्योत्तर पुराण भी है .आशय है कि हमारे पूर्वज मनीषियों ने आज की आधुनिक विज्ञान कथा की शैली के साहित्य का सृजन मनन करना शुरू कर दिया था .
आज भविष्य दर्शन के लिए विज्ञान कथा की शरण मे जाया जा सकता है लेकिन हमारे पुराणों मे बहुत कुछ ऐसा है जिससे आज के विज्ञान कथाकारों को कई नयी सूझ मिल सकती है .
विज्ञान कथाएं हमारे परिचित बिम्बों ,दृश्यों और जाने समझे सामजिक यथार्थों से अलग एक अन्चीन्हे परिदृश्य का सृजन करती हैं क्योंकि उनका विवेच्य अमूमन तौर पर भविष्य होता है -जो हमारे लिए अपरिचित ,अनदेखा रहता है .लेकिन मिथकों के स्वर्ग नरक से भी तो हम परिचित नही होते !जीवित रहते किसने उन्हें देखा है ?अब देखिये न कितने तरह के नरक बताये गए हैं -रौरव नरक ,कुम्भीपाक नरक आदि आदि जिन्हें सुन पढ़ कर भले ही हममे से कितनों की रूह काँप जाती हो मगर हमने उन्हें देखा तो नही है -ऐसे ही विज्ञान कथाओं का रचनाकार निस्सीम ब्रह्माण्ड के अनेक कल्पित ग्रहों उपग्रहों का चित्रण करता है जिन्हें हमने देखा नही है .गरज यह कि दोनों के दृश्य चित्रण से हमारा कोई साबका तो नही है पर यह कितना अद्भुत है कि पुराणकार की लेखनी पर हममे से अधिकांश लोग भरोसा करते हैं ,जबकि विज्ञान कथाकार के ऐसे ही वर्णनों को अधिकांश सुधी साहित्यिक जन दरकिनार कर जाते है .अर्थात अभी हिन्दी मे विज्ञान कथाओं को पुराणों जैसी विश्वसनीयता भी हासिल नही है जबकि वे पौराणिक वर्णनों से ज्यादा तर्कसम्मत हैं .हमे उन कारणों को तलाशना होगा कि हिन्दी मानस विज्ञान कथाओं से इतनी दूरी क्यों बनाए हुए है ?
हमारे पुराणों मे एक अद्भुत प्रसंग रामराज्य की संकल्पना का है ,जब मैंने आल्दुअस हक्सले की 'द ब्रेव न्यू वर्ल्ड ' पढी तो ऐसा लगा कि यह तो मात्र हमारे रामराज्य की संकल्पना का ही विस्तार मात्र है -यद्यपि विज्ञान कथाकारों ने उसे डिसटोपिया की श्रेणी मे रखा है ,यानी यूटोपिया के ठीक उलट 'द न्यू वर्ल्ड '[१९३८]मे परखनली शिशुओं की दुनिया का अद्भुत वर्णन है जहाँ लोग हर कीमत पर सुखानुभूति चाहते हैं -वहाँ मृत्यु एक आनंदानुभूति है -लोग सोमा नामक बटी खा खा कर दुनियावी परेशानियों से दूर हो सतत आनंद की दुनिया मे गोते लगाते है .वह एक थके हारे समाज के पलायनवादी गतिविधियों का लेखा जोखा है .ये मिथकीय संकल्पनाएँ ऐसी हैं जो विज्ञान कथाओं की प्रकृति और प्रवृति के सर्वथा अनुरूप हैं .जबकि रामराज्य की हमारी संकल्पना मे सुखानुभूति सहज है सभी स्वतः संतुष्ट हैं ,आनंदित है -किसी को भी 'दैहिक दैविक , भौतिक ' किसी किस्म का कोई दुःख नही है -सब कुछ सहज सामान्य है .आप रामचरित मानस मे रामराज्य प्रसंग और ब्रेव न्यू वर्ल्ड ख़ुद पढ़ कर देंखे कि चिंतन के स्तर पर कैसे दोनों कृतियों मे अद्भुत साम्य है .एक दूसरा मामला ब्रह्मांड चिंतन का है जिसमे हमारी ऋषि प्रज्ञा आज के विज्ञान कथाकारों के चिंतन से कही भी कम नही लगती .कोई काकभुसुन्डी के भगवान राम के मुहँ मे प्रवेश के पश्चात ब्रह्मांड दर्शन का प्रसंग ध्यान से पढ़ तो ले -यह एक अद्भुत रूपक ही भारतीय वान्ग्मयों की चिंतन की विराटता को विश्व फलक पर स्थापित कर देने मे पूर्णतया क्षम है .यह तो देखिये कि उक्त रूपक मे प्रति ब्रह्मांड तक की चर्चा है -अनगिनत ब्रह्माण्ड तो खैर है हीं .और प्रत्येक ब्रह्माण्ड के प्राणी भी किसिम किसिम के हैं पर भगवान् राम हर जगहं समान हैं उनमे कोई फर्क नही है .कुछ और उदारहण आगे भी .......
Saturday, April 5, 2008
Science Communication through science fiction
Science Communication through science fiction in
[Abstract only ]
Science fiction is all about imagining the future. It is said to be the branch of literature which is concerned with the man’s response towards the impacts of science and technology on the future of mankind. The pace with which technology is altering the ways of our lives it appears that we are going to have a world of tomorrow very changed and different from our today’s world. Science fiction writers have the capability to foresee that future very well in advance. Jules Verne, the celebrated French writer of last century had such a prophetic vision and predicted the man's victory over MOON as early as in 1830’s.
It’s not that predicting the future is man's pursuit of any recent origin. Our many scriptures are full of such references. In mythological descriptions an aircraft ‘ PUSPAK VIMAN’ have been shown to have an endless capacity/facility to accommodate any passenger even at last moment of departure and is also depicted to be an emotional entity. Likewise ‘SUDARSHAN CHAKRA’, comes back to lord
Our ancestors imagined all such queer and interesting things at par with today’s SF writers but because the required technology was not available in ancient times many of their predictions could not have been realized in contemporary times MAY BE WE DONT HAVE TO WAIT FOR LONG! INTELLIGENT MACHINES ARE ALREADY HERE AND MANY MORE INVENTIONS ARE IN OFFING. We must salute to wisdom of our ancestor’s imaginative power!
Besides, sf could also play a vital role in popularizing basic sciences and a way of scientific thinking amongst Indian masses. Experiments have proved that sf works as an effective learning device especially amongst school children and neo-literates. Many subject specific sf stories when told to students earlier to teaching them any particular science subject elicited in them more interest and dedication towards that particular subjects.