Science fiction in India has lately emerged as a respectable literary genre. Please join me to have a panoramic view of Indian science fiction.
Tuesday, November 13, 2007
कहीं यही तो सोम नही है ?
Wednesday, November 7, 2007
जारी है संजीवनी बूटी ,सोम की खोज ......!
किसे कहेंगे हम सोम -कस्मै सोमाय हविषा विधेम!
कहीं यही तो सोम नही है?
सोम की सबसे प्रबल दावेदारी Robert Gordon Wasson द्वारा एक मशरूम के लिए की गयी जिन्होंने अमैनिटा मस्कैरिया[सबसे नीचे का चित्र ] को इसका सबसे उपयुक्त प्रत्याशी माना [ .इसके बारे मे उन्होने बडे विस्तार से अपनी एक पुस्तक ,"Soma: Divine Mushroom of Immortality" मे लिखा .मगर बहुतों को बात कुछ हजम नही हुयी ,और एक आपत्तिजनक बात भी उन्होने वैदिक ऋचाओं के गलत [?]उद्धरण से कह डाली थी कि सोमा अनुष्ठान आयोजनों मे पुरोहितों के मूत्र का पान कर भी अनुयायी सोमरस का आनंद उठाते थे ,यह बात ऋग्वेद के गंभीर अध्येताओं को स्वीकार्य नही लगी .फिर बात आयी गयी हो गयी .दूसरी प्रबल दावेदारी पेगैनम हर्मला नामक वनस्पति के लिए की गयी [बाएँ ]मगर यह बात भी कुछ जमी नही और एक नया नाम उछाला गया -एफेड्रा का ]जिसे आज भी आश्चर्यजनक रुप से ईरानी /फारसी लोगो मे होम [सोम] के नाम से ही जाना जाता है .नेपाल मे इसे सोमलता के नाम से जाना जाता है .मगर भारत के अधिकांश हिस्सों मे यह कुदरती तौर पर नही पाया जाता .कुछ लोगों को आपत्ति है कि इसका प्रभाव वैसा नही है जैसा कि वेदों मे सोम्पान के लिए वर्णित है .हाँ यह अद्रेनेलिन सरीखे हारमोन का प्रभाव अवश्य उत्पन्न करता है .लिहाजा अभी भी असली सोम की खोज जारी है और एक नयी दावेदारी हाल मे हुई है जिसके बारे मे विस्तार से अगली बार ...
[चित्र साभार विकिपीडिया ]
Tuesday, November 6, 2007
किसे कहेंगे हम सोम -कस्मै सोमाय हविषा विधेम !
कुछ चिट्ठाकार प्रेमियों ने वैदिक सोम वनस्पति के बारे मे जिज्ञासा दिखाई है .अध्ययनों से पता चलता है कि वैदिक काल के बाद यानी ईशा के पहले ही इस बूटी /वनस्पति की पहचान मुश्किल होती गयी .ऐसा भी कहाजाता है कि सोम[होम] अनुष्ठान करने वाले ब्राह्मणों ने इसकी जानकारी आम लोगो को नही दी ,उसे अपने तक हीसीमित रखा और कालांतर मे ऐसे अनुस्ठानी ब्राह्मणों की पीढी /परम्परा के लुप्त होने के साथ ही सोम कीपह्चानभी मुश्किल हो गयी .सोम को न पहचान पाने की विवशता की झलक रामायण युग मे भी है -हनुमान दो बारहिमालय जाते हैं ,एक बार राम और लक्ष्मण दोनो की मूर्छा पर और एक बार केवल लक्ष्मण की मूर्छा पर ,मगरसोम की पहचान न होने पर पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं: दोनो बार -लंका के सुषेण वैद्य ही असली सोम की पहचानकर पाते हैं यानी आम नर वानर इसकी पहचान मे असमर्थ हैं [वाल्मीकि रामायण,युद्धकाण्ड,७४ एवं १०१ वां सर्ग] सोम ही संजीवनी बूटी है यह ऋग्वेद के नवें 'सोम मंडल 'मे वर्णित सोम के गुणों से सहज ही समझा जा सकता है .
सोम अद्भुत स्फूर्तिदायक ,ओज्वर्धक तथा घावों को पलक झपकते ही भरने की क्षमता वाला है ,साथ हीअनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति कराने वाला है .सोम के डंठलों को पत्थरों से कूट पीस कर तथा भेंड के ऊन कीछननी से छान कर प्राप्त किये जाने वाले सोमरस के लिए इन्द्र,अग्नि ही नही और भी वैदिक देवता लालायित रहतेहैं ,तभी तो पूरे विधान से होम [सोम] अनुष्ठान मे पुरोहित सबसे पहले इन देवताओं को सोमरस अर्पित करते थे , बाद मे प्रसाद के तौर पर लेकर खुद स्वयम भी तृप्त हो जाते थे .आज के होम भी उसी परम्परा के स्मृति शेष हैं परसोमरस की जगह पंचामृत ने ले ली है जो सोम की प्रतीति भर है.कुछ प्राचीन धर्मग्रंथों मे देवताओं को सोम नअर्पित कर पाने और वैकल्पिक पदार्थ अर्पित करने कि ग्लानि और क्षमा याचना की सूक्तियाँ भी हैं ।
मगर जिज्ञासु मानव के क्या कहने जिसने मानवता को सोम कलश अर्पित करने की ठान रखी है और उसकी खोज
मधु ,ईख के रस ,भांग ,गांजा ,अफीम,जिन्सेंग जैसे पादप कंदों -बिदारी कंद सरीखे आयुर्वेदिक औषधियों से कुछ खुम्बियो [मशरूमों ] तक आ पहुँची है जिनके बारे मे अगले चिट्ठे मे ............. ]
Monday, November 5, 2007
ऋग्वेद की चमत्कारी औषधि सोम बूटी को क्या आप पहचानते हैं ?
मशहूर ब्रितानी लेखक आल्दुअस हक्सले ने अपनी विश्व प्रसिद्ध कृति ब्रेव न्यू वर्ल्ड मे सोम का जमकर उल्लेखकिया है -उपन्यास के पात्र तनाव टालने के लिए दनादन सोमा टैबलेट खाते हैं -मतलब सोमरस की परम्परा मे हीसोम टिकिया भी हक्सले के कल्पना लोक मे आ चुकी थी .उपन्यास के पढ़ने के साथ ही मैंने भी सोम बूटी कीखोज करीब दो दशक पहले शुरू कर दी थी ,मगर अभी भी कामयाबी नही मिली है .आप मे से क्या कोई मेहरबानीकर मेरी मदद करेंगे?